Wednesday 9 October 2019

सम्पूर्ण समर्पण युक्त विश्वास

कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र को विशाल अश्वरोही सेनाओं के आवागमन के योग्य बनाने हेतु तैयार किया जा रहा था। प्रतिस्पर्धी तंबुओं के लिये स्थान साफ किये जा रहे थे। विशाल सेनाओं के लिये भोजन पकाने हेतु लकड़ियों के विशाल गट्ठर बनाये जा रहे थे। हाथियों द्वारा वृक्षों को गिराया जा रहा था। ऐसे ही एक वृक्ष पर एक गौरैया का घोंसला था जिसमें चार छोटे बच्चे थे। जैसे ही पेड़ को गिराया गया उसका घोेंसला धरती पर गिर पड़ा। बच्चे जो अभी उड़ने के लिये बहुत छोटे थे, चमत्कारिक ढंग से सही-सलामत थे।

असुरक्षित व आतंकित गौरैया ने चारों ओर मदद के लिये देखा। उसी समय उसे कृष्ण दिखाई दिये जो अर्जुन के साथ मैदान का निरीक्षण कर रहे थे। वे वहाँ युद्धभूमि का परीक्षण करने आए थे जिससे युद्ध के आरंभ होने से पहले एक विजयी सैन्य रणनीति पर विचार किया जा सके। गौरैया ने कृष्ण के रथ के पास पहुँचने के लिये पूरी शक्ति से अपने पंख फड़फड़ाए।

और भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करने लगी “हे कृष्ण, कृपया मेरे बच्चों की रक्षा कीजिये, कल जब यह युद्ध आरंभ होगा तो यह सब कुचले जाएंगे।

तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा “मैं तुम्हें सुन रहा हूँ जो सर्वज्ञ हैं। किंतु मैं प्रकृति के नियम में बाधा नहीं डाल सकता।

“भगवन मैं केवल इतना जानती हूँ कि आप मुझे बचाने आये हैं। मैं अपने बच्चों का भाग्य आपके हाथों में सौंपती हूँ। आप उन्हें मार सकते हैं या फिर बचा सकते हैं। अब यह आप पर है।”

यह संकेत करते हुए कि वे इस विषय में कुछ भी नहीं कर सकते, कृष्ण ने साधारण मनुष्य की भांति कहा, “समय का पहिया तो बिना विचार किए चलता है”।

“मैं कोई दर्शनशास्त्र नहीं जानती।” गौरैया ने विश्वास एवं श्रद्धा से कहा “आप ही समय का पहिया हैं। मैं तो यही जानती हूँ। मैं आत्मसमर्पण करती हूँ।” तब भगवान ने कहा फिर अपने घोंसले में तीन सप्ताह का भोजन एकत्रित कर लो।”

इस वार्तालाप से अनभिज्ञ अर्जुन उस गौरैया को भगा रहा था। कृष्ण गौरैया को देखकर मुस्कुरा रहे थे। गौरैया ने अभिवादन स्वरूप थोड़ी देर अपने पंख फड़फड़ाए और अपने घोंसले पर वापस आ गई।

दो दिन पश्चात् युद्ध आरंभ की घोषणा हेतु शंखनाद होने से पूर्व कृष्ण ने अर्जुन से उसका धनुष-बाण मांगा।

अर्जुन भौचक्का था क्योंकि कृष्ण ने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी। इस के अतिरिक्त अर्जुन को यह विश्वास था कि मैं ही यहाँ सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हूँ।

“आज्ञा दें प्रभु” उसने दृढ़ विश्वास से कहा “मेरे बाणों के लिये कुछ भी अभेद्य नहीं है।”

अर्जुन से चुपचाप धनुष लेते हुए कृष्ण ने एक हाथी पर निशाना साधा। किंतु उस जानवर को मार गिराने के बजाए वह तीर उसके गले में लटकी घंटी पर लगा और चिंगारियाँ निकलीं।

कृष्ण को एक सरल सा निशाना चूकते देख अर्जुन अपनी हंसी रोक न सका।

“क्या, मैं करूँ?” उसने प्रस्ताव किया।
पुनः उसके प्रश्न एवं प्रतिक्रिया को अनदेखा करते हुए कृष्ण ने उसे उसका धनुष वापस कर दिया और कहा कि इसके आगे कुछ और करना आवश्यक नहीं है।

“किंतु केशव, आपने हाथी को क्यों निशाना बनाया?” अर्जुन ने पूछा।

“क्योंकि यही वह हाथी है जिसने उस पेड़ को गिराया था जिस पर उस गौरैया का घोंसला था।”

“कौन सी गौरैया?” अर्जुन ने आश्चर्य प्रकट किया “और वह हाथी तो सकुशल और जीवित है। केवल उसकी घंटी ही गिरी है।” उसके प्रश्न की उपेक्षा करते हुए श्री कृष्ण ने उसे अपना शंख बजाने का आदेश दिया।

युद्ध शुरू हुआ और अगले अठारह दिनों में अनगिनत जीवन नष्ट हो गये। अन्त में पांडवों की विजय हुई। पुनः कृष्ण अर्जुन को लेकर रक्तिम युद्धक्षेत्र का निरीक्षण करने गये। वहाँ कईं शव पड़े थे जिनका अंतिम संस्कार भी नहीं किया गया था। युद्ध-भूमि में कटे हुए सिर, हाथ-पैर, निर्जीव घोड़े व हाथी कूड़े करकट के समान पड़े हुए थे।

कृष्ण एक स्थान पर रुके और हाथी की एक घंटी को विचार मग्न होकर देखने लगे।

उन्होंने कहा “अर्जुन, क्या तुम मेरे लिये इस घंटी को उठाकर दूसरी ओर रख दोगे ?

यद्यपि आदेश सरल था किंतु अर्जुन को तात्पर्य समझ नहीं आया। आखिरकार इस विशाल युद्धक्षेत्र में जहाँ बहुत सी अन्य वस्तुओं को हटाने की आवश्यकता थी, कृष्ण ने उसे एक तुच्छ धातु के टुकड़े को हटाने के लिए क्यों कहा? उसने उन्हें प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

“हाँ, वह घंटी। यह वही घंटी है जो उस हाथी के गले से तब गिरी थी जब मैंने उस पर तीर चलाया था।”

बिना कोई प्रश्न किये अर्जुन उस भारी घंटी को हटाने के लिये झुका। जैसे ही उसने उसे उठाया उसका संसार सदा के लिये परिवर्तित हो गया।

एक, दो, तीन, चार, पाँच। चार छोटी चिड़िया एक के पीछे एक करके उड़ गयीं और उनके पीछे एक गौरैया थी। माँ चिड़िया कृष्ण के चारों ओर अत्यधिक प्रसन्नता में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा करने लगी। वह एक घंटी जो कृष्ण ने अठारह दिनों पूर्व विभाजित की थी उसने चिड़िया के पूरे परिवार की रक्षा की।

“मुझे क्षमा करें कृष्ण” अर्जुन ने कहा “आपको मानव शरीर में साधारण मनुष्यों की भांति व्यवहार करते देख मैं भूल गया था कि आप सचमुच कौन हैं।”

और हम भी अपने ईष्ट अपने भगवान पर उस चिड़िया की तरह भरोसा करें तो हमारे ईष्ट हमारे भगवान भी हर पल हमारे साथ ही हैं,

जरूरत सिर्फ और सिर्फ हमारे विश्वास करने की है!!


🙏🌺हरे कृष्ण🌺🙏*


(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)

Tuesday 1 October 2019

राधारानी की कृपा....


श्रीरुप गोस्वामी जी पर राधारानी जी की कृपा 

बरसाना में श्री रुप गोस्वामी , चेतन्य महाप्रभु के छः शिष्यो में से एक., एक बार भ्रमण करते-करते अपने शिष्य श्री जीव गोस्वामी जी के यहाँ बरसाना आए. 

जीव गोस्वामी जी ठहरे फक्कड़ साधू फक्कड़ साधू को जो मिल जाये वो ही खाले जो मिल जाये वो ही पी ले. आज उनके गुरु आए तो उनके मन भाव आया की में रोज सूखी रोटी, पानी में भिगो कर खा लेता हूं. मेरे गुरु आये हैं क्या खिलाऊँ.. 

एक बार अपनी कुटिया में देखा किंचित तीन दिन पुरानी रोटी बिल्कुल कठोर हो चुकी थी, मैं साधू पानी में गला गला खा लूं. यद्यपि मेरे गुरु साधुता की परम स्थिति को प्राप्त कर चुके है फिर भी मेरे मन के आनन्द के लिए, कैसे मेरा मन संतुष्ट होगा.

 एक क्षण के भक्त के मन में सँकल्प आया की अगर समय होता तो किसी बृजवासी के घर चला जाता. दूध मांग लेता, चावल मांग लाता. मेरे गुरु पधारे जो देह के सम्बंध में मेरे चाचा भी लगते हैं. लेकिन भाव साम्रज्य में प्रवेश कराने वाले मेरे गुरु भी तो हैं. उनको खीर खिला देता… 

रूप गोस्वामी ने आकर कहा – जीव भूख लगी है तो जीव गोस्वामी उन सूखी रोटीयो को अपने गुरु को दे रहे है.अँधेरा हो रहा है.जीव गोस्वामी की आँखों में अश्रु आ गए. और रुप गोस्वामी जी ने कहा – तू क्यों रो रहा है हम तो साधू हैं ना. जो मिल जाय वही खा लेते हैं. में खा लूंगा.

 श्री जीव गोस्वामी जी ने कहा- नहीं बाबा मेरा मन नहीं मान रहा.आप की यदि कोई पूर्व सूचना होती तो मेरे मन में कुछ था. यह चर्चा हो ही रही थी की कोई अर्द्धरात्रि में दरवाजा खटखटाता है. ज्यो ही दरवाजा खटखटाया है. जीव गोस्वामी जी ने दरवाजा खोला.

 एक किशोरी खड़ी हुई है 8 -10 वर्ष की हाथ में कटोरा है. कहा, बाबा मेरी माँ ने खीर बनाई है और कहा जाओ बाबा को दे आओ. जीव गोस्वामी ने उस खीर के कटोरे को ले जाकर रुप गोस्वामी जी के पास रख दिया. 

बोले बाबा – पाओ…ज्यों ही रूप गोस्वामी जी ने उस खीर को स्पर्श किया… उनका हाथ कांपने लगा. जीव गोस्वामी को लगा बाबा का हाथ कांप रहा है. पूछा – बाबा कोई अपराध बन गया है ? 

रूप गोस्वामी जी ने पूछा-  जीव! आधी रात को यह खीर कौन लाया…?? 

बाबा पड़ोस में एक कन्या है मैं जानता हूं उसे, वो लेके आई है.नहीं जीव इस खीर को मैने जैसे ही चख के देखा और मेरे में ऐसे रोमांच हो गया. नहीं जीव् तू पता कर यह कन्या मुझे मेरे किशोरी जी के होने अहसास दिला रही है.

 नहीं बाबा,  वह कन्या पास की है, मैं जानता हूं उसको. अर्ध रात्रि में दोनों गए है उस के घर और दरवाजा खटखटाया, अंदर से उस कन्या की माँ निकल कर बाहर आई. जीव गोस्वामी जी ने पूछा – आपको कष्ट दिया, परन्तु आपकी लड़की कहां है ? 

उस महिला ने कहा, – का बात है गई बाबा.. आपकी लड़की है कहाँ…??

 वो तो उसके ननिहाल गई है गोवेर्धन, 15 दिन हो गए हैं. रूप गोस्वामी जी तो मूर्छित हो गए. जीव गोस्वामी जी ने पैर पकडे और जैसे तेसे श्रीजी के मंदिर की सीढ़िया चढ़ने लगे.  जैसे एक क्षण में चढ़ जायें.

 लंबे-लंबे पग भरते हुए मंदिर पहुचे. वहां श्री गोसाई जी से कहा-  बाबा! एक बात बताओ आज क्या भोग लगाया था श्रीजी श्यामा प्यारी को ? गोसांई जी जानते थे श्री जीव गोस्वामी को, कहा क्या बात है गई बाबा…कहा क्या भोग लगाया था… गोसाई जी ने कहा, आज श्रीजी को खीर का भोग लगाया था. 

रूप गोस्वामी तो श्री राधे श्री राधे कहने लगे, उन्होंने गोसाई जी से कहा – बाबा एक निवेदन और है आप से, यद्दपि यह मंदिर की परंपरा के विरुद्ध है कि एक बार जब श्री जी को शयन करा दिया जाये तो उनकी लीला में जाना अपराध है.

 प्रिया प्रियतम जब विराज रहे हों तो नित्य लीला है उनकी,अपराध है फिर भी आप एक बार यह बता दीजिये की जिस पात्र में भोग लगाया था वह पात्र रखो है के नहीं रखो है…गोसाई जी मंदिर के पट खोलते हैं और देखते हैं की वह पात्र नहीं है वहां पर. गोसांई जी बाहर आते हैं और कहते हैं – बाबा ! वह पात्र नहीं है वहां पर ! न जाने का बात है गई है…

रूप गोस्वामी जी ने अपना दुप्पटा हटाया और वह चाँदी का पात्र दिखाया, बाबा यह पात्र तो नहीं है ?

 गोसांई जी ने कहा – हां बाबा यही पात्र तो है… रूप गोस्वामी जी ने कहा- श्री राधा रानी 300 सीढ़ी उतरकर मुझे खीर खिलाने आई, किशोरी पधारी थी, राधारानी आई थी. उस खीर को मुख पर रगड़ लिया सब साधु संतो को बांटते हुए श्री राधे श्री राधे करते हुऐ फिर कई वर्षो तक श्री रूप गोस्वामी जी बरसाना में ही रहे.

 हे करुणा निधान ! इस अधम, पतित-दास को ऐसी पात्रता और ऐसी उत्कंठा अवश्य दे देना कि इन रसिकों के गहन चरित का आस्वादन कर अपने को कृतार्थ कर सकूँ। इनकी पद धूलि की एक कनिका प्राप्त कर सकूँ.

जय जय श्रीराधे...