🌹🌷🚩 श्री राम जय राम जय जय राम 🌹🌷🚩जय जय विघ्न हरण हनुमान🌹🌷🚩
🏹🏹🏹 धनुष यज्ञ 🏹🏹🏹
☘💐☘💐☘💐☘💐☘💐
--- रामजी बडे धर्म संकट मे हैं ।
लक्ष्मण जी अडे है भैय्या ! शिर मत झुकाना ।
जानकी जी की सखियां कह रही है प्रभो ! सरकार ! शिर झुका दीजिये ।
रामजी ने कहा , हम वीर हैं क्षत्रिय हैं , रघुवंशी हैं ।सखियां बोली , आप कोई भी हो , ससुराल हैं यहाँ बडो़ बडो़ का शिर झुक जाता हैं ।
श्रीराम जी कहते हैं , विवाह मे तो कोई ऐसी रीति नही होती जिससे सिर झुकाया जाता हो ।
एक सखी ने कहा , प्रभु ! विवाह की रीति आपको कैसे मालुम ? क्या इससे पहले भी आपका कहीं विवाह हुआ हैं ?
अब रामजी सखियों के इस विनोद पर मुस्कराकर रह गये ।
पर राम जी की ओर से वकालत तो श्री लक्ष्मण जी कर रहे थे । लक्ष्मण जी ने कहा , हमारे रामजी सरल हैं पर इसका अर्थ यह नही कि इनकी कोई महिमा नही हैं । इनको साधारण व्यक्ति समझा है क्या ? ये जगन्नियन्ता , जगदाधार ,परब्रम्ह्य ,सर्वशक्तिमान , सर्वेश्वर , सर्वसमर्थ , परमात्मा हैं । इनके कई अवतार हो चुके हैं तो पिछले अवतारो मे विवाह हुआ होगा । तबका अनुभव सुना रहे हैं । वकील साहब ने तर्क बहुत बढिया दिया ।
परन्तु एक सखी कहती हैं राजराजेश्वरी श्रीकिशोरी जी की कृपा से मिथिला का पक्ष कमजोर नही हैं । कैसे ? कहा कि इनके जितने अवतार हुये है उनके सारे नामो की लिस्ट हमारे पास हैं । ये बताएं पिछले किस अवतार मे विवाह हुआ है इनका ? अब लक्ष्मण जी ने कहा ये तो यही जाने हम क्या बताएं ?सखियां कहती है ये क्या बतायेंगे हमे मालुम है नही हुआ हैं -
मीन कमठ सूकर नर हरी । बामन परसुराम वपुधरी ।।
श्रीराम अवतार से पहले ये अवतार हुये हैं । मत्स्य अवतार , आपने कभी मछली के विवाह की कथा सुनी । भगवान मत्स्य बने ,कच्छप बने ,वाराह बने , वामन ,नरसिंह और परसुराम अवतार हुआ । किसी अवतार मे विवाह नही हुआ ।
वेद के ममत्व पे मत्स्य अवतार लीन्हो , कच्छप तन कीन्हो वाराह वपु धारी में ।
वामन के रुप भूप बलि कों पाताल भेज्यों , रह्यो भृगुवंस मांहि बाल ब्रम्ह्यचारी मैं ।।
बरी कवन बरै रमारानी हूं देख डरी , धरयो नरसिंह जब रुप भयकारी मैं ।
काहू अवतार मैं ऐसी नहि रीति रची , आज ही बिनीति मोहि बांध्यो ससुरारि में मैं ।।
सखियां बोली , तो आज सोच लीजिए सरकार ! इतने अवतार के बाद तो अब मौका मिला हैं । अगर हमारी बात नही मानोगे तो यह अवतार भी ऐसे ही जाएगा - बिना विवाह के । इसलिए झुका दो शिर ।
रामजी चुपचाप खडे है । जानकी जी ने लक्ष्मण जी को इसारा किया आपतो शेषावतार हैं ,उठा दो पृथ्वी मै माला पहना दूँ प्रभु को । लक्ष्मण जी ने कहा आपकी आज्ञा शिरोधार्य पर एक समस्या है जब मै पृथ्वी उठाउँगा तो यह तो पूरी उठेगी । फिर राम जी तभी तो उतने ही उठ जाएगें ।
मित्रों इस प्रसंग पर बहुत संतो के तरह तरह के भाव हैं । पर एक भाव मुझे अत्यन्त प्रिय है उसे ही उल्लेखित करता हूँ ।
बडी देर हो गयी दोनो तरफ से कटाक्ष चल रहा है । जानकी जी जयमाल लिए खडी है अभी पहनाया नही है लेकिन सखियां गाने लगीं - झूठें ही । क्या गा रही हैं -
गावहिं छबि अवलोकि सहेली । सिय जयमाल राम उर मेली ।।
सखियां झूठे ही गा रही हैं - सीता जी ने रामजी के गले मे माला डाल दी , अब श्रीरामजी बडे हैरान ! सिर तो झुकाया नही , जयमाल गिर कैसे गई । यह तो गा रही है , गिर नही सकती । माला न गिरी होती तो ये गाती कैसे ? जरुर गिर गयी है । श्रीराम जी ने सोचा क्यूँ परेशान हो देख लेते है कि माला गिरी है कि झूंठे गा रही है और जैसे ही रामजी यह देखने के लिये सिर नीचे किया वैसे ही सिय जयमाल राम उर मेली ।
जयमाल गिर गई । लेकिन मित्रो एक बात और सुनो । श्रीरामजी सिंहासन पर बैठे हैं ।श्री सीता जी जयमाल लिए खडी हैं । सिर झुकाया । अब सीताजी जयमाल ही न पहनाए । रामजी कहते है जल्दी करो । हम सिर झुकाए बैठे हैं । सीताजी कहती है आपने धनुष तोडने मे जल्दी की थी क्या ?
धनुष चढावत लाडली ज्यों तरसाई लाल ।
त्यों तरसैहे सिय तुम्हे पहिरावत जयमाल ।।
रामजी कहते हैं तो हम सिर झुकाए बैठे है भरी सभा मे यह अच्छा लग रहा है क्या ? श्री जानकी जी कहती हैं , आप ऐसे बडे अच्छे लग रहे हैं , शिर झुकाए सभा मे बैठे हुए । प्रभु इससे आपका शील प्रकट होता हैं ।देखो दूसरे राजाओं को जिनसे धनुष हिला नही वह अकड़ के बैठे हैं - जैसे बडा कमाल किया हो । और जिसके छूते ही धनुष टूट गया , वह शिर झुकाए बैठा हैं । यही तो आपका शील हैं ।
भगवान श्रीराम कहते हैं. ,हम सिर झुकाए ? जानकी जी कहती है आप ज्ञान के स्वरुप हैं । तो ज्ञान के सिर झुकाने का अर्थ क्या हैं ? ज्ञानन मे विनम्रता होनी ही चाहिए । विद्या ददाति विनयम् । श्री जानकी जी भक्ति हैं ।
कितना सुन्दर संकेत है , भक्ति उसी ज्ञान को जयमाल पहनाती हैं जिस ज्ञान मे विनम्रता हो , जहाँ विनम्रता हो ।
रामजी कहते हैं यह तो ठीक हैं लेकिन हम कब तक सिर झुकाए बैठे रहेगें ? देर हो रही है ? जानकी जी ने कहा क्यूँ आपकी ओर से भी तो देर हुई थी ? श्रीरामजी ने कहा , आपने ही कहा कि मै ज्ञान का स्वरुप हूँ , ज्ञान की ओर से बिलम्ब हो यह बात तो समझ मे आती हैं पर भक्ति की ओर से यदि बिलम्ब होगा तो भक्ति पर भरोसा कौन करेगा । इसलिए आप बिलम्ब न करें ।
सज्जनो जयमाल पडने के बाद सखिओं ने सीता जी से कहा अब इन्हे प्रणाम करों -
सखी कहहिं प्रभु पद गहु सीता । करत न परसि चरन अति भीता ।।
सीता जी तो रामजी के रुप माधुर्य के पान मे मस्त है उन्हे चरण स्पर्श का ध्यान ही कहा । और गोस्वामी बाबा कहते है चरण छूना कोई आवश्यक नही है । हम सीताराम के प्रेम माधुर्य मे चरण स्पर्श कराके ध्यान भंग नही करेगें ।
गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसत पग पानि ।
मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि ।।
कुछ लोगो का मानना है कि सीता जी ने गौतम की पत्नी अहिल्या का स्मरण करके चरण स्पर्श नही किया ।
परन्तु यहाँ पर गोस्वामी बाबा का भाव है कि माता जानकी चाहती है कि मेरा प्रेम सदैव बना रहे । अहिल्या की तरह चरण रज मिलते ही इनसे दूर न हो जाऊँ । इसलिये भगवान राम , माता जानकी के अलौकिक प्रेम को देखकर हंसने लगे ।
मित्रों अलौकिक प्रेम को तो श्रीराम जी ही जानते हैं । अब युगल सरकार बिराजमान है जय जयकार हो रही है । हम आप भी जय जयकार करे ।
🌷🚩 श्री राम जय राम जय जय राम 🌹🌷🚩जय जय विघ्न हरण हनुमान🌹🌷🚩
🍁🍁🍁 भाग 30 🍁🍁🍁