Wednesday, 29 March 2023

श्रीरामनवमी - तीनों लोकों के पालनहार प्रभु श्रीराम जी का जन्मोत्सव ।

 


आज श्रीरामनवमी का पावन पर्व है जो कि तीनों लोकों के पालनहार प्रभु श्रीराम जी का जन्मोत्सव है। प्रभु के श्री चरणों में प्रणाम करते हुए प्रभु से प्रार्थना है कि प्रभु आप  सभी पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें और उनकी कृपा से सम्पूर्ण विश्व में मंगल ही मंगल होगा।


महाकवि गोस्वामी तुलसी दास जी ने राम चरित मानस के बालकांड में बहुत ही ह्रदय स्पर्शी रूप से प्रभु श्रीराम के प्राकट्य का वर्णन किया है। आइये भगवान् के प्राकट्य और बाललीला का आनंद गोस्वामी जी के शब्दों में लें। 


नौमी तिथि मधु मास पुनीता । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता

मध्य दिवस अति सीत न घामा । पावन काल लोक बिश्रामा ।।


पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित मुहूर्त था। न बहुत सर्दी थी, न धूप ( गर्मी ) थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था।


सीतल मंद सुरभि बह बाऊ । हरषित सुर संतन मन चाऊ ।।

बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा । स्त्रवहिं सकल सरिता अमृत धारा ।।


शीतल, मन्द और सुगंधित ( तीनों प्रकार का ) वायु बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में ( बड़ा ) चाव था। वन फूलें हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियाँ अमृत की धारा बहा रहीं थीं।


सो अवसर बिरंचि जब जाना । चले सकल सुर साजि बिमाना ।

गगन बिमल संकुल सुर जूथा । गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा ।।


जब ब्रह्मा जी ने वह (भगवान के प्रकट होने का) अवसर जाना, तब उनके समेत सारे देवता विमान सजा-सजा कर चले। निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया। गंधर्वों के दल गुणों का गान करने लगे।


बरषहिं सुमन सुअंजुलि साजी । गहगहि गगन दुदंभी बाजी ।।

अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा । बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा ।।


और सुन्दर अञ्जुलियों में सजा-सजा कर पुष्प बरसाने लगे । आकाश में घमाघम नगाड़े बजने लगे । नाग, मुनि और देवता स्तुति करने लगे और बहुत प्रकार से अपनी-अपनी सेवा ( उपहार ) भेंट करने लगे।


दोहा - सुर समूह बिनती करि पहुँचें निज निज धाम ।

जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम ।।


देवताओं के समूह प्रार्थना करके अपने-अपने लोक में जा पहुँचे। समस्त लोकों को शांति देने वाले, जगदाधार प्रभु प्रकट हुए।


छन्द - भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ।।

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी ।

भूषन बनमाला नयन बिसाला शोभासिंधु खरारी ।।


भावार्थ:- दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।


यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि माँ कौसल्या जी के सामने चार भुजा धारण करके अस्त्र-शस्त्र लिए, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने भगवान प्रकट हुए। अर्थात भगवान माँ के पेट से तो नहीं पैदा हुए, यह बात स्पष्ट हो गयी। क्योंकि माँ के पेट से अस्त्र-शस्त्र दिव्य आभूषण और वनमाला पहने कोई भी बच्चा नहीं आता। आगे और स्पष्ट तुलसीदास जी लिखते है -


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ।

माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ।।

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ।।


भावार्थ:- दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी- हे अनंत ! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूँ। वेद और पुराण तुम को माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित (भगवान का निराकार स्वरूप) बतलाते हैं। श्रुतियाँ और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं।


यहाँ पर तुलसीदास जी लिखते है कि लक्ष्मीपति भगवान प्रकट हुए। इसका मतलब की विष्णु जी प्रकट हुए चार भुजा धारण करके अस्त्र-शस्त्र लिए, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने।


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ।

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै।।

उपजा जब ग्याना प्रभु मुस्काना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।

कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ।।


भावार्थ:- वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह (भरे) हैं। वे तुम मेरे गर्भ में रहे- इस हँसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए। वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो (भगवान के प्रति पुत्र भाव हो जाए)


यहाँ पर राम की माँ कौसल्या जी कहती है कि जिसके रोम-रोम में माया के ब्रह्माण्डों के समूह है वो मेरे गर्भ में है यह हँसी की बात है। फिर जब माँ को भगवान ने कहा कि माँ आपने पूर्व जन्म में वर मांगा था। तो मैं आपके पुत्र के रूप में प्रकट हो गया हूँ। परन्तु माँ कौसल्या जी कहती है कि मैंने तो आपको पुत्र रूप में वर माँगा था आप तो मेरे पिता के रूप में आ गये।


माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा ।

कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ।।

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।

यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहि भवकूपा ।।


भावार्थ:- माता की वह बुद्धि बदल गई, तब वह फिर बोली- हे तात ! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, (मेरे लिए) यह सुख परम अनुपम होगा। (माता का) यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया।


(तुलसीदासजी कहते हैं-) जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्री हरि का पद पाते हैं और (फिर) संसार रूपी कूप में नहीं गिरते।


यहाँ पर और स्पष्ट हो जाता है कि भगवान पहले विष्णु रूप में प्रकट हुए फिर बाद में माँ कौसल्या के कहने पर भगवान विष्णु ने अपने आपको बालक रूप धारण कर के रोना शुरू कर दिया। अब यह स्पष्ट हो जाता है की भगवान राम माँ के पेट से नहीं पैदा हुए। भगवान विष्णु ने अपने आप को बालक (राम) स्वरूप बनाया और फिर रोना शुरू किया बालक की भाती।


दोहा - बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ।।


भावार्थ:- ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे (अज्ञानमयी, मलिना) माया और उसके गुण (सत्‌, रज, तम) और (बाहरी तथा भीतरी) इन्द्रियों से परे हैं। उनका (दिव्य) शरीर अपनी इच्छा से ही बना है (किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं)


इसका मतलब की भगवान का शरीर माया और उसके गुण (सत्‌, रज, तम) से नहीं बना है।


मनुष्य का शरीर माया से पंचतत्व या पंचमहाभूत - पृथ्वी, पानी, आकाश, अग्नि और वायु से बनता है। और मनुष्य बनने का कारण है कर्म बंधन। परन्तु भगवान कर्म बंधन में नहीं बधे है अतएव तुलसीदास जी लिखते है की राम का शरीर यह माया से (किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा) नहीं बना है। भगवान का शरीर दिव्य है और भगवान अपनी इच्छा से ही अपना शरीर बनाते है।


सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आईं सब रानी॥

हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥


भावार्थ:- बच्चे के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियाँ हर्षित होकर जहाँ-तहाँ दौड़ीं। सारे पुरवासी आनंद में मग्न हो गए।


सार - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रभु श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में दोपहर के समय में हुआ था। उस समय अभिजीत महूर्त था। जब भगवान राम का जन्म हुआ जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में उपस्थित थे। जो किसी साधारण मनुष्य के जन्म के समय नहीं होता है।


🚩जय जय सियाराम 🚩

राम ही राम ❤🙏


(साभार -  अनजान, व्हाट्सएप से प्राप्त)