लिंग थापि विधिवत कर पूजा ।
शिव सामान प्रिय मोय ना दूजा ।।🚩
श्री राम जी द्वारा रामेश्वरम शिवलिंग की स्थापना --रामेश्वरम शिवलिंग के दर्शन का महत्व--अद्भुत प्रसंग 🍀
शिव द्रोही मम दास कहावा।
सो नर मोय सपनेहु नही भावा ।।🚩
शंकर विमुख भगत चह मोरी।
सो नारकी मूढ़ मति थोरी।।🚩
शंकर प्रिय ममः द्रोही शिव द्रोही मम दास
ते नर करहि कल्पभर घोर नरक में वास।।🚩
जो रामेश्वरम दर्शनही करहहि ।
ते तनु तजि ममः लोक सिधारिहही।।🚩
राम बचन सब के जिय भाए।
मुनिबर निज निज आश्रम आए॥🚩
गिरिजा रघुपति कै यह रीती।
संतत करहिं प्रनत पर प्रीती।।🚩
श्री राम जी द्वारा रामेश्वरम की स्थापना एवं रामेश्वरम शिवलिंग के दर्शन का महत्ब - जो शिव द्रोही है और भगवान राम की पूजा करता है उनके लिए प्रभु राम ने क्या संदेश दिया है और जो राम द्रोही है और शिव की पूजा करता है उसके लिए प्रभु ने क्या संदेश दिया है
प्रभु ने उसे इस प्रशंग में कहा है
शिव द्रोही ममः दाश कहावा
सो नर मोय सपनेहु नही भावा।।
जो एक वार रामेश्वरम शिवलिंग का दर्शन कर लेगा उसका तो जीवन धन्य हो जाएगा - इतनी राम जी ने रामेश्वरम की महिमा बताई है
तुलसी दास जी रामचरित मानस की मधुर चौपाइयों द्वारा इस प्रसंग का वर्णन करते है
सुनि कपीस बहु दूत पठाए।
मुनिबर सकल बोलि लै आए॥🚩
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा।
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा॥॥🚩
भावार्थ : श्री रामजी के वचन सुनकर वानरराज सुग्रीव ने बहुत से दूत भेजे, जो सब श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर ले आए। शिवलिंग की स्थापना करके विधिपूर्वक उसका पूजन किया (फिर भगवान बोले-) शिवजी के समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है॥🚩
सिव द्रोही मम भगत कहावा।
सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥🚩
संकर बिमुख भगति चह मोरी।
सो नारकी मूढ़ मति थोरी॥4॥🚩
भावार्थ : जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकरजी से विमुख होकर (विरोध करके) जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है॥॥🚩
दोहा :
संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास॥॥🚩
भावार्थ : जिनको शंकरजी प्रिय हैं, परन्तु जो मेरे द्रोही हैं एवं जो शिवजी के द्रोही हैं और मेरे दास (बनना चाहते) हैं, वे मनुष्य कल्पभर घोर नरक में निवास करते हैं॥॥🚩
चौपाई :
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं।
ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं॥🚩
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि।
सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि॥1॥🚩
भावार्थ : जो मनुष्य (मेरे स्थापित किए हुए इन) रामेश्वरजी का दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ावेगा, वह मनुष्य सायुज्य मुक्ति पावेगा (अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा)॥॥🚩
होइ अकाम जो छल तजि सेइहि।
भगति मोरि तेहि संकर देइहि॥🚩
मम कृत सेतु जो दरसनु करिही।
सो बिनु श्रम भवसागर तरिही॥॥🚩
भावार्थ : जो छल छोड़कर और निष्काम होकर श्री रामेश्वरजी की सेवा करेंगे, उन्हें शंकरजी मेरी भक्ति देंगे और जो मेरे बनाए सेतु का दर्शन करेगा, वह बिना ही परिश्रम संसार रूपी समुद्र से तर जाएगा॥॥🚩
राम बचन सब के जिय भाए।
मुनिबर निज निज आश्रम आए॥🚩
गिरिजा रघुपति कै यह रीती।
संतत करहिं प्रनत पर प्रीती॥॥🚩
भावार्थ : श्री रामजी के वचन सबके मन को अच्छे लगे। तदनन्तर वे श्रेष्ठ मुनि अपने-अपने आश्रमों को लौट आए। (शिवजी कहते हैं-) हे पार्वती! श्री रघुनाथजी की यह रीति है कि वे शरणागत पर सदा प्रीति करते हैं॥॥🚩
🚩जय हो प्रभु राम की🚩 जय हो राजाराम की🙏🙏
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