Wednesday 24 April 2019

कृष्ण के वृंदावन छोड़ने के बाद राधा का क्या हुआ..?


जब-जब श्रीकृष्ण का नाम लिया गया है, ऐसा कभी हुआ नहीं कि राधा जी का नाम ना लिया गया हो। श्रीकृष्ण को अमूमन भक्त राधे-कृष्ण कहकर ही पुकारते हैं। क्योंकि यह दो शब्द, यह दो नाम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं और इन्हें कोई अलग नहीं कर सकता। 

लेकिन तब क्या हुआ था जब श्रीकृष्ण को राधा को छोड़कर जाना पड़ा?

मंदिरों में केवल श्रीकृष्ण की अकेले मूर्ति देखना कम पाया जाता है, अमूमन हम उनकी मूर्ति के साथ राधा की मूर्ति जरूर देखते हैं। आप स्वयं वृंदावन के किसी भी मंदिर में प्रवेश कर लीजिए, वहां आपको राधे-कृष्ण की ही मूर्ति के दर्शन होंगे....
कृष्ण से राधा को और राधा से कृष्ण को कोई जुदा नहीं कर सकता, यह एक गहरा रिश्ता है 

लेकिन जब वास्तव में श्रीकृष्ण अपनी प्रिय राधा को छोड़कर मथुरा चले गए थे तब राधा का क्या हुआ?

 कृष्ण के बिना उन्होंने अपना जीवन कैसे बिताया?

 क्या जीवन बिताया भी था या...

यह सवाल काफी गहरे हैं लेकिन उससे भी गहराई में जाने के बाद इन सवालों का सही उत्तर सामने आया है। यह सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण का बचपन वृंदावन की गलियों में बीता। नटखट नंदलाल अपनी लीलाओं से सभी को प्रसन्न करते, कुछ को परेशान भी करते लेकिन कृष्ण के साथ ही तो वृंदावन में खुशियां थीं।

बड़े होकर कृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से अनेकों गोपियों का दिल जीता, लेकिन सबसे अधिक यदि कोई उनकी बांसुरी से मोहित होता तो वह थीं राधा। परंतु राधा से कई अधिक स्वयं कृष्ण, राधा के दीवाने थे।
क्या आप जानते हैं कि राधा, कृष्ण से उम्र में पांच वर्ष बड़ी थीं। वे वृंदावन से कुछ दूर रेपल्ली नामक गांव में रहती थीं लेकिन रोज़ाना कृष्ण की मधुर बांसुरी की आवाज़ से खींची चली वृंदावन पहुंच जाती थी।

कृष्ण भी राधा से मिलने जाते
जब भी कृष्ण बांसुरी बजाते तो सभी गोपियां उनके आसपास एकत्रित हो जातीं, उस मधुर संगीत को सुनते हुए सभी मग्न हो जाते। और इसी का फायदा पाकर कई बार कृष्ण चुपके से वहां से निकल जाते और राधा से मिलने उनके गांव पहुंच जाते। लेकिन धीरे-धीरे वह समय निकट आ रहा था जब कृष्ण को वृंदावन को छोड़ मथुरा जाना था।

वृंदावन में शोक का माहौल उत्पन्न हो गया, इधर कान्हा के घर में मां यशोदा तो परेशान थी हीं लेकिन कृष्ण की गोपियां भी कुछ कम उदास नहीं थीं। दोनों को लेने के लिए कंस द्वारा रथ भेजा गया, जिसके आते ही सभी ने उस रथ के आसपास घेरा बना लिया यह सोचकर कि वे कृष्ण को जाने नहीं देंगे।

उधर कृष्ण को राधा की चिंता सताने लगी, वे सोचने लगे कि जाने से पहले एक बार राधा से मिल लें इसलिए मौका पाते ही वे छिपकर वहां से निकल गए। फिर मिली उन्हें राधा, जिसे देखते ही वे कुछ कह ना सके। राधा-कृष्ण के इस मिलन की कहानी अद्भुत है।

दोनों ना तो कुछ बोल रहे थे, ना कुछ महसूस कर रहे थे, बस चुप थे। राधा कृष्ण को ना केवल जानती थी, वरन् मन और मस्तिष्क से समझती भी थीं। कृष्ण के मन में क्या चल रहा है, वे पहले से ही भांप लेती, इसलिए शायद दोनों को उस समय कुछ भी बोलने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी।

अंतत: कृष्ण, राधा को अलविदा कह वहां से लौट आए और आकर गोपियों को भी वृंदावन से उन्हें जाने की अनुमति देने के लिए मना लिया।

अखिरकार वृंदावन कृष्ण के बिना सूना-सूना हो गया, ना कोई चहल-पहल थी और ना ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के ग़म में डूबे हुए थे। परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन क्यों ! क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे।

शारीरिक रूप से जुदाई मिलना उनके लिए कोई महत्व नहीं रखता था, यदि कुछ महत्वपूर्ण था तो राधा-कृष्ण का भावनात्मक रूप से हमेशा जुड़ा रहना। कृष्ण के जाने के बाद राधा पूरा दिन उन्हीं के बारे में सोचती रहती और ऐसे ही कई दिन बीत गए। लेकिन आने वाले समय में राधा की जिंदगी क्या मोड़ लेने वाली थी,
 उन्हें इसका अंदाज़ा भी नहीं था।

माता-पिता के दबाव में आकार राधा को विवाह करना पड़ा और विवाह के बाद अपना जीवन, संतान तथा घर-गृहस्थि के नाम करना पड़ा। लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी वे कृष्ण का ही नाम लेती थीं। दिन बीत गए, वर्ष बीत गए और समय आ गया था जब राधा काफी वृद्ध हो गई थी। फिर एक रात वे चुपके से घर से निकल गई और घूमते-घूमते कृष्ण की द्वारिका नगरी में जा पहुंची।

वहां पहुंचते ही उसने कृष्ण से मिलने के लिए निवेदन किया, लेकिन पहली बार में उन्हें वह मौका प्राप्त ना हुआ। परंतु फिर आखिरकार उन्होंने काफी सारे लोगों के बीच खड़े कृष्ण को खोज निकाला। राधा को देखते ही कृष्ण के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन तब ही दोनों में कोई वार्तालाप ना हुई।

क्योंकि वह मानसिक संकेत अभी भी उपस्थित थे, उन्हें लफ़्ज़ों की आवश्यक्ता नहीं थी। कहते हैं राधा कौन थी, यह द्वारिका नगरी में कोई नहीं जानता था। राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त करा दिया, वे दिन भर महल में रहती, महल से संबंधित कार्यों को देखती और जब भी मौका मिलता दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती।

लेकिन फिर भी ना जाने क्यों राधा में धीरे-धीरे एक भय पैदा हो रहा था, जो बीतते समय के साथ बढ़ता जा रहा था। उन्हें फिर से कृष्ण से दूर हो जाने का डर सताता रहता, उनकी यह भवनाएं उन्हें कृष्ण के पास रहने न देतीं। साथ ही बढ़ती उम्र ने भी उन्हें कृष्ण से दूर चले जाने को मजबूर कर दिया। अंतत: एक शाम वे महल से चुपके से निकल गई और ना जाने किस ओर चल पड़ी।

वे नहीं जानती थीं कि वे कहां जा रही हैं, आगे मार्ग पर क्या मिलेगा, बस चलती जा रही थी। परंतु कृष्ण तो भगवान हैं, वे सब जानते थे इसलिए अपने अंतर्मन वे जानते थे कि राधा कहां जा रही है। फिर वह समय आया जब राधा को कृष्ण की आवश्यकता पड़ी, वह अकेली थी और बस किसी भी तरह से कृष्ण को देखना चाहती थी और यह तमन्ना उत्पन्न होते ही कृष्ण उनके सामने आ गए।

कृष्ण को अपने सामने देख राधा अति प्रसन्न हो गई। परंतु दूसरी ओर वह समय निकट था जब राधा पाने प्राण त्याग कर दुनिया को अलविदा कहना चाहती थी। कृष्ण ने राधा से प्रश्न किया और कहा कि वे उनसे कुछ मांगे लेकिन राधा ने मना कर दिया।

कृष्ण ने फिर से कहा कि जीवन भर राधा ने कभी उनसे कुछ नहीं मांगा, इसलिए राधा ने एक ही मांग की और वह यह कि ‘वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी’। कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद मधुर धुन में उसे बजाया, बांसुरी बजाते-बजाते राधा ने अपने शरीर का त्याग किया और दुनिया से चली गई। उनके जाते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी और कोसों दूर फेंक दी।.

🌹 *जय जय श्री राधे।।* 🌹



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Monday 22 April 2019

🌻क्यों पड़ते है श्री जगन्नाथ भगवान प्रत्येक वर्ष बीमार...

  
उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पूरी में एक भक्त रहते थे , श्री माधव दास जी  अकेले रहते थे, कोई संसार से इनका लेना देना नही।

अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे और उन्ही को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे।

प्रभु इनके साथ अनेक लीलाए किया करते थे | भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे |

एक बार माधव दास जी को अतिसार( उलटी – दस्त ) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे।

कोई कहे महाराजजी हम कर दे आपकी सेवा तो कहते नही मेरे तो एक जगन्नाथ ही है वही मेरी रक्षा करेंगे । ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने बेठने में भी असमर्थ हो गये ,

तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दे।

भक्तो के लिए आपने क्या क्या नही किया…
क्यूंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था की उन्हें पता भी नही चलता था की कब मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे।

उन वस्त्रो को जगन्नाथ भगवान अपने हाथो से साफ करते थे, उनके पुरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे।

कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सके, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करी है।

भक्त माधव दास जी पर प्रभु का स्नेह.........

जब माधवदासजी को होश आया,तब उन्होंने तुरंत पहचान लीया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं।
एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से –

“प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता”

ठाकुरजी कहते हा देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता,इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्द्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है।

अगर उसको इस जन्म में नही काटोगे तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हे अगला जन्म लेना पड़ेगा और मै नही चाहता की मेरे भक्त को ज़रा से प्रारब्द्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े,

इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नही टाल सकता 

भक्तो के सहायक बन उनको प्रारब्द्ध के दुखो से, कष्टों से सहज ही पार कर देते है प्रभु
अब तुम्हारे प्रारब्द्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे
15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदास जी से ले लिया

आज भी इसलिए जगन्नाथ भगवान होते है बीमार.......

वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है ( जिसे स्नान यात्रा कहते है )

स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते है।

15 दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है  कभी भी जगनाथ भगवान की रसोई बंद नही होती पर इन 15 दिन के लिए उनकी रसोई बंद कर दी जाती है।

भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता , ( बीमार हो तो परहेज़ तो रखना पड़ेगा ) 

प्रभु को लगाया जाता है काढ़ो का भोग.........

15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ो का भोग लगता है | इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं।

काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है।

आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बंद कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएं।

जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते है उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते है।

खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तो का जीवन सुखमयी बनाये। ऐसे तो सिर्फ मेरे भगवान ही हो सकते है ।।

🌻जय जगन्नाथ जी🌻




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Friday 19 April 2019

*।। श्री हनुमानजी की दिव्य उधारी।।*

*सब पर कर्जा श्री हनुमान जी का,सब ऋणी श्री हनुमानजी महराज के।* 

रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से!

अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।

माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका लेके गए, और धीरज बंधवाया कि...!

कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥

मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए,आप किसी और से बुलावा लो।

अब बारी आयी लखनजी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।

ये तो जो खड़ा है, वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं!

अब बारी आयी भरतजी की, अरे! भरतजी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझपे, हनुमानजी का सब मिलके और लगवा दो!

और दूसरी बात ये कि...!

बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना। 
अधम कवन जग मोहि समाना॥

मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।

अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुहन भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुहन भैया बोल पड़े मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकलने के लिए, जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो! किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।

अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार, 
माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है।और आप खुद भी कहते हो कि...!

प्रति उपकार करौं का तोरा। 
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥

आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु! राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो

सनमुख होइ न सकत मन मोरा । 
देवी! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो *"राम नाम"* में है। क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।

पहले हनुमान विवाह करें,
लंकेश हरें इनकी जब नारी।

मुदरी लै रघुनाथ चलै,निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।

अायि कहें, सुधि सोच हरें, तन से, मन से होई जाएं उपकारी।

तब रघुनाथ चुकायि सकें, ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।

देवी! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!

"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"

मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।

दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए,सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।
राघवजी ने कहा! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद,अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?

हनुमानजी बोले! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!

"तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना"

तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?
सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। रामजी ने कहा! ठीक है, मांग लो, सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।

हनुमानजी ने कहा! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए...?

हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।

हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।
नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।

जानकी जी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए राघवजी बोले, लो उतर गया हनुमानजी का कर्जा!

और अभी तक जिसको बोलना था, सब बोल चुके है, अब जो मै बोलता हूं उसे सब सुनो, रामजी भरत भैया की तरफ देखते हुए बोले...!

"हे! भरत भैया' कपि से उऋण हम नाही"........

हम चारों भाई चाहे जितनी बार जन्म लेेलें, हनुमानजी से उऋण नही हो सकते। 


🙏🙏 जय श्री हनुमान जी महाराज की जय 🙏🙏


(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)

Thursday 18 April 2019

" श्रीबांके बिहारी जी "

" II जय श्री राधे II "


बहुत समय पहले की बात है  
वृन्दावन में श्रीबांके बिहारी जी के मंदिर में रोज
पुजारी जी बड़े भाव से सेवा करते थे। 

वे रोज बिहारी जी की आरती करते , भोग
लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू
भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव
था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख
लगेगी तो वे उठ कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे
तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था।
इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।

एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद
वे चार लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले
गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे
बूंदी के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान
खुली थी। वे घर जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक
आया और बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए।

बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब
तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर
जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ
करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू
मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने
कहा - पैसे दो।

बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत
अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने
लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो,
कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह
बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग
गया। 

सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो उन्होंने देखा
कि बिहारी जी के हाथ में कंगन नहीं है। यदि चोर भी
चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। 

थोड़ी देर बाद ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई।
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात
याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और
पुजारी जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब
पुजारी जी को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया
था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने गए थे।

यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो
भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।

🥀⚘ जय श्री राधे ⚘🥀



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Friday 12 April 2019

"आइए हनुमंत जी बिराजिए"

एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू करने से पहले "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे। एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई। उन्हें लगा कि महाराज रोज "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहते हैं तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे! अत: वकील साहब ने महात्मा जी से पूछ ही डाला- महाराज जी, आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं। हमें बड़ा रस आता है परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उसपर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं? साधु महाराज ने कहा… हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं। वकील ने कहा… महाराज ऐसे बात नहीं बनेगी। हनुमान जी यहां आते हैं इसका कोई सबूत दीजिए । आपको साबित करके दिखाना चाहिए कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं। महाराज जी ने बहुत समझाया कि भैया आस्था को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्घा का विषय है । आप कहो तो मैं प्रवचन करना बंद कर दूँ या आप कथा में आना छोड़ दो। लेकिन वकील नहीं माना, वो कहता ही रहा कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं। यह बात और स्थानों पर भी कहते होंगे,इसलिए महाराज आपको तो साबित करना होगा कि हनुमान जी कथा सुनने आते हैं। इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा। मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया। हारकर साधु महाराज ने कहा… हनुमान जी हैं या नहीं उसका सबूत कल दिलाऊंगा। कल कथा शुरू हो तब प्रयोग करूंगा। जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने को कहता हूं आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना। कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर आना और फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूंगा। मैं कथा से पहले हनुमानजी को बुलाऊंगा, फिर आप गद्दी ऊँची उठाना। यदि आपने गद्दी ऊँची कर दी तो समझना कि हनुमान जी नहीं हैं। वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया। महाराज ने कहा… हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ?.... यह तो सत्य की परीक्षा है। वकील ने कहा- मैं गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूंगा। आप पराजित हो गए तो क्या करोगे? साधु ने कहा… मैं कथावाचन छोड़कर आपके ऑफिस का चपरासी बन जाऊंगा। अगले दिन कथा पंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग रोजाना कथा सुनने नहीं आते थे,वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आए। काफी भीड़ हो गई। पंडाल भर गया। श्रद्घा और विश्वास का प्रश्न जो था। साधु महाराज और वकील साहब कथा पंडाल में पधारे... गद्दी रखी गई। महात्मा जी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण किया और फिर बोले "आइए हनुमंत जी बिराजिए" ऐसा बोलते ही साधु महाराज के नेत्र सजल हो उठे । मन ही मन साधु बोले… प्रभु ! आज मेरा प्रश्न नहीं बल्कि रघुकुल रीति की पंरपरा का सवाल है। मैं तो एक साधारण जन हूँ। मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना। फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया गया आइए गद्दी ऊँची कीजिए। लोगों की आँखे जम गईं । वकील साहब खड़ेे हुए। उन्होंने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर सके ! जो भी कारण रहा, उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया, किन्तु तीनों बार असफल रहे। महात्मा जी देख रहे थे, गद्दी को पकड़ना तो दूर वकील साहब गद्दी को छू भी न सके। तीनों बार वकील साहब पसीने से तर-बतर हो गए। वकील साहब साधु महाराज के चरणों में गिर पड़े और बोले महाराज गद्दी उठाना तो दूर, मुझे नहीं मालूम कि क्यों मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुंच पा रहा है। अत: मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं। कहते है कि श्रद्घा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है। मानो तो देव नहीं तो पत्थर। प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है तो प्रभु बिराजते है।


🙏🙏जय श्री राम🙏🙏




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Saturday 6 April 2019

" II जय श्री राधे II "


प्रेम शब्द ही अपने आप में परिपूर्ण हैं | प्रेम सोच समझकर नही किया जा सकता हैं | ये एक खुबसूरत एहसास हैं | इस प्रेम के साथ जीना बहुत बड़ी बात हैं | आश्चर्य की बात हैं प्रेम का एहसास कम लोगो को होता हैं | कुछ लोग कहते हें की, “हम उनके बिना नही जी सकते” ये जरूरी नही प्रेम ही हैं; ये आदत भी हो सकती हैं | ज्यादातर लोग अपनी इसी आदत को ही प्रेम समझकर बैठे हैं | प्रेम की अभिव्यक्ति बाहर से जरूर आती हैं पर प्रेम हमारे अंदर से ही आता हैं | प्रेम एक बहुत खुबसूरत एहसास हैं जिसे शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता हैं केवल उसे अनुभव किया जा सकता हैं |
प्रेम जिंदगी का अभिन्न अंग हैं | प्रेम के साथ अभिन्नता भी होनी चाहिये | सच्चा प्रेम हमें जीने की शक्ति देता हैं | प्रेम के स्वरुप अलग-अलग हैं | भक्ति भी प्रेम का ही स्वरुप हैं |

रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली के साथ अभिन्न प्रेम किया था | वो हमेशा माँ काली की भक्ति प्रेम में डूबे रहते थे | वे रोज रात को  जंगल जाया करते थे, उनका एक शिष्य यह देखता था | उसमें उत्सुकता जाग उठी की मेरे गुरु रोज रात में कहाँ जाते हैं | एक रात जब रामकृष्ण परमहंस रोज की रोज की भांति जंगल के लिय निकले, उनका वह शिष्य भी उनके पीछे-पीछे चुपचाप चला आया | उसने वहां जंगल में देखा की उसके गुरु निर्वस्त्र माँ काली के भजन में नाच रहे थे | उसे लगा उसके गुरु पागल हो गए हैं | उस वक्त रामकृष्ण परमहंस माँ काली के भक्ति प्रेम में डूबे हुए थे, वे माँ काली के साथ अभिन्न थे | उन्होंने प्रेम में माँ काली के साथ अभिन्नता पा ली थी |

जहाँ प्रेमभाव होता हैं वहाँ भौतिक अड़चने अपने आप दूर होने लगती हैं | प्रेम में कमी, खामियां, दूरियां ख़त्म होने लगती हैं | प्रेम में एकदूसरे पर अधिकार जताना नहीं हैं, यह प्रेम का निम्न स्तर का हैं | जहाँ स्वार्थ होता हैं वहां प्रेम नही वासना होती हैं | प्रेम तो एक होने की अनुभूति हैं | इसमें अधिकार या वर्चस्व नही हैं |

प्रेम एक होने का अनुभव हैं | जहाँ एकत्व का अनुभव आता हैं वहाँ यादों के सहारे की जरूरत भी नही होती हैं | यादें तभी होती हैं जहाँ प्रेम में कुछ कमी हो |
एकत्व का सबसे बड़ा उदाहरण राधा-कृष्ण, कृष्ण-मीरा के प्रेम में देखा जा सकता हैं | राधा ने कृष्ण से बड़े प्रेम से कहा “हें कृष्ण! ये तुम्हारी कैसी पहचान हैं, जहाँ तुम्हारे नाम से पहले मेरा नाम आता हैं | यह प्रेम की सबसे उच्च अभिव्यक्ति हैं जो स्वार्थ और शरीर से उपर हैं| इस प्रेम में दो शरीर नही आत्मा का प्रेम हैं |

कृष्ण-मीरा 

मीरा एक साधारण नारी होते हुए भी प्रेम को उच्चतम स्तर पर पहुँचा सकी | पत्थर की मूर्ति को उसने प्रेम की मूर्ति बना दिया | उसके प्रेम-प्रस्ताव को भगवान कृष्ण भी नही ठुकरा सके | यह प्रेम की उच्चतम ऊंचाई हैं | राधा-कृष्ण के प्रेम में , प्रेम की गहराई हैं, जबकि प्रेम की अनुभूति की ऊंचाई कृष्ण को मीरा के पास खीचकर लाई | पर राधा-कृष्ण के प्रेम में गहराई थी | वो दो आत्माओं की अनुभूति  थी | राधा-कृष्ण तथा मीरा-कृष्ण दोनों की प्रेम-तरंगे ( Vibration)अलग हैं| प्रेम दोनों का पवित्र हैं, प्रेम एक पवित्र रिश्ता हैं | इसमें वासना का स्थान नहीं हैं |

रामकृष्ण परमहंस के प्रेम में भक्तिरस हैं | वे माँ काली के साथ भक्तिप्रेम से अभिन्न थे | प्रेम के स्वरुप अलग-अलग हें पर परिभाषा एक हैं | प्रेम का अस्तिव अखंड हैं | प्रेम अपने आप में  पूर्ण हैं | इसके एहसास में कमतरता नहीं होती | प्रेम में उच्च तरंगे काम करती हैं | ये तरंगे हमें ध्यान से प्राप्त होती हैं | ध्यान के बिना हम तरंगे भेज नही सकते हैं | राधा हमेशा कृष्ण के ध्यान में रहती थी | तभी उसकी तरंगे कृष्ण को प्राप्त होती थी |

हर रिश्ता या बंधन प्रेम से पूर्ण होता हैं | उसे हमें महसूस करना हैं | ईश्वर ने हर इंसान को यह क्षमता दी  हैं की वह  प्रेम को महसूस कर सके | दिया खुद को जब तक जलाता नही तबतक शंमा उसके प्रेम को महसूस नही करती  |

ये प्रेम समझने के लिय पूरी जिन्दगी कम पड़ जाती हैं | ईश्वर चाहता हें की मनुष्य अपने इंसानी प्रेम को इस स्तर पर ला सके की वह अपनी चेतना को परम चेतना में मिला सके, जो की जीवन का परम उदेश्य हैं |

जब आप प्रेम में अपने आप को मिटा देते हैं तो ही सही मायने में आप प्रेम को उपलब्ध हो पाते हैं | गहराई से देखा जाये जाये तो प्रेम और कुछ और नही बल्कि ध्यान का ही एक रूप हैं क्योंकि जब हम ध्यान में अपने आप को मिटा देते हें तभी हम परमात्मा को उपलब्ध हो पाते हैं | बात एक ही हैं हर जीव परमात्मा का ही अंश हैं, और जब प्रेम अपने उच्च स्तर पर पहुँचता हैं तब आप अपने प्रेमी में ही अपने परमात्मा को पाते हैं | ईश्वर ही प्रेम हैं और प्रेम ही ईश्वर हैं |

🥀⚘ जय श्री राधे ⚘🥀



(Courtesy - श्री हरि मंदिर चण्डीगढ )

" मर्यादा पुरुषोत्तम राम - शबरी संवाद "


एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से बोल फूटे- कहो राम! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?
राम मुस्कुराए- यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मूल्य...

"जानते हो राम  ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ जब तुम जन्में भी नहीं थे। यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास..? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा..."

राम ने कहा- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है।"

"एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति के दो भाव होते हैं। पहला मर्कट भाव, और दूसरा मार्जार भाव। बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है। 
पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी। और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है... मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हे क्या पकड़ना...।"

राम मुस्कुरा कर रह गए। भीलनी ने पुनः कहा - "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं । तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी... यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?"

राम गम्भीर हुए। कहा, "भ्रम में न पड़ो मां ! राम क्या रावण का वध करने आया है ? छी... अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है। राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था। 

जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है। 

राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है। राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया मां..."

सबरी एकटक राम को निहारती रहीं। राम ने फिर कहा- " राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए। राम निकला है ताकि विश्व को बता सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है। राम निकला है कि ताकि भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है। 

राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है, राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय। 

और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं ।"

सबरी की आँखों में जल भर आया था। उसने बात बदलकर कहा- "बेर खाओगे राम?

राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां..."

सबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया। राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा- "मीठे हैं न प्रभु?"

यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है...।

सबरी मुस्कुराईं, बोलीं- "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम! गुरुदेव ने ठीक कहा था...।"

🙏🌹 ।। जै श्रीराम ।। 🙏🌹 





(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)

"पालनहारा मोर मुकुट मुरलीवाला"

🙏🌹 जै श्रीकृष्ण  🌹🙏

हर समय कण्ठी माला लेकर बैठे रहते हो । कभी कुछ दो पैसे का इंतजाम करो लड़की के लिए लड़का नहीं देखना। आज फिर निर्मला ने रोज की तरह सुबह से ही बड़बड़ाना शुरु कर दिया।

अरे भाग्यवान ईश्वर पर विश्वास रखो , समय पर सब हो जाएगा । चौबे जी ने अपना गमछा संभालते हुए कहा।

इन चरणों में जो भी आये, 
उसका जन्म सफल हो जाये। 

हाँ हाँ ईश्वर तो जैसे घर बैठे ही लड़का भेज देंगे। भगवान के पास तो कोई काम है नहीं सिर्फ आपका ध्यान रखने के अलावा ।

अरे क्यों पूरा दिन चकचक करती रहती हो ? बैसे चौबेजी कभी गुस्सा नहीं होते। वो तो बिमारी के चलते नोकरी छोड दी थी। अब बस पूरा दिन बस गोपालजी की सेवा करते और उन्ही के बारे में ही सोचते हैं ।

निर्मला बोली जयपुर वाली मौसी बता रही थी , उनके रिश्तेदारी में एक लड़का है । पर देखने तो जब आओगे , 

जब जेब में 1000-2000 रुपए होंगे । जो दस बीस रुपए बचते हैं ,उन्हें भी अपने दोस्तों को उधार दे देते हो। आज तक लौटाए हैं किसी दोस्त ने।

पर आज तक कभी किसी चीज की कोई कमी हुई है । नहीं ना, आगे भी नहीं होगी ईश्वर की कृपा से।
तुम तो मुझे भजन भी नहीं करने देती ।

भजन ही करना था तो शादी क्यों की ? अब क्या वो बैठे-बिठाए तुम्हारी लड़की की शादी भी कर जाएंगे।

हाँ रहने दो बस । यह लो थैला पकड़ो और जाओ बाजार से रसोई के लिए सामान ले आओ और हां , जिस लडके के बारे में मैंने बात की है । उसके बारे में जरा सोचना परसों जाना है तुम्हें। अब थोड़े बहुत पैसों  के लिए हम एफडी तो तुडवाओगे नहीं सो जो यार दोस्तों को उधार दे रखे हैं उनसे जरा मांग लो।

थैला लेकर चौबेजी निकल तो गए लेकिन विचार यही है मन में। पैसों का इंतजाम कैसे होगा ? सब्जी लेने से पहले जरा अपने एक दोस्त से अपने पैसों की बात कर ली जाए । जिस दुकान में काम करता है , वो भी पास ही है ।

मोहनलाल ने अपने मित्र को देखा तो गले लगा लिया । अरे चौबेजी कैसे आना हुआ ? कुछ ना  भैया कुछ समस्या आन पड़ी है । पैसो की सख्त जरुरत है ? अपने ही पैसे चौबेजी ऐसे मांग रहे हैं , जैसे उधार मांग रहे हो।

देखता हूँ साहब तो बिमार है चार दिन पहले ही दिल का दौरा पड़ा था। अभी दस दिन पहले ही विदेश से आए हैं। बैसे तो ऐसे 6 शोरूम है उनके पास। पर चलो एक दो दिन में आएंगे तो मांग करके तुम्हें दे दूंगा। 

और बताओ बिटिया ठीक है ? कैसा चल रहा है उसका  योगा क्लास ?

बढ़िया चल रहा है सुबह 5:00 बजे जाती है ,पूरा 5000 कमाती है। चौबेजी ने बड़े गर्व से कहा। 

सर्वगुण संपन्न है जी हमारी लाली। कैबिन से बाहर  निकले ही थे , एक जगह नज़र टिकी गई। इतनी सुंदर मूर्ति गोपाल की। चौबे जी अपलक देख रहे थे जैसे अभी बात करने लगेगी।
तभी मोहनलाल ने ध्यान भंग करते हुए कहा ," बडे साहब ने आर्डर पर बनवाई है। बाहर से बनकर आई है । ऐसी दो बनवाई हैं ।"

रास्ते भर मूर्ति की छवि   उनकी नजरों से ओझल नहीं हो रही थी । काश वो मूर्ति उनके पास होती। भूल नहीं पा रहे  हैं  काश अगर उनके पास होती कैसे दिनभर निहारते रहते , क्या क्या सेवा करते सोचते सोचते ,घर कब आया पता ही नहीं चला।

लेकिन घर के सामने इतनी भीड़ क्यों है ? यह गाड़ी किसकी गाड़ी तो काफी महंगी लग रही है ? अपने घर के दरवाजे में घुसने ही वाले थे कि थैला हाथ से छीनकर निर्मला ने मुस्कुराकर उनका  स्वागत किया। 

 कौन आया है ? अंदर सूट बूट में एक आदमी बैठा है। चौबेजी को  देखते ही वो हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

 राधे राधे चौबे जी ने कहा। बैठिए पर क्षमा कीजिए  मैंने आपको पहचाना नहीं।

 अरे आप कैसे पहचानेंगे ? हम पहली बार मिल रहे हैं । उसने बड़ी शालीनता के साथ जवाब दिया।
                    
जी कहिए , मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? 

 दरअसल मैं आपसे कुछ मांगने आया हूँ । 

 सीधा-सीधा बताइए चौबे जी सोच में  पडे थे जाने वह क्या मांग ले?
और इतने बड़े आदमी को मुझसे क्या चाहिए ?

आज से चार दिन पहले मैं सुबह की सैर के लिए गया था। लेकिन उस दिन मेरे साथ एक दुर्घटना हुई। अचानक मुझे हार्टअटैक आ गया। आसपास  कोई नहीं था मदद के लिए। ना मैं कुछ बोल पा रहा था । तभी एक लड़की स्कूटी पर आती दिखी। मुझे सडक पर पड़े हुए देखकर उसने अपनी स्कूटी रोकी।

अकेली वो मुझे उठा नहीं सकती थी। फिर अपनी स्कूटी से दूर से दुकान पर जाकर एक आदमी को बुलाकर लाई । उसकी मदद से उसने मुझे अपनी स्कूटी पर बिठाया और मुझे हॉस्पिटल लेकर गई। अगर थोड़ी सी भी देर हो जाती शायद मेरा अन्त निश्चित था। और वो लड़की कोई और नहीं , आपकी बेटी थी।

उस आदमी ने हाथ जोड़ते हुए कहा , अगर आप लायक समझे ,
तो मैं अपने बेटे के लिए आपकी बेटी का हाथ मांगता हूं । ओर जो अनजान की मदद कर सकती है । वो अपने परिवार का कितना ध्यान रखेगी।"

चौबेजी एक दम जड़ हो गए । वह विश्वास नहीं कर पा रहे थे,
हे ईश्वर क्या यह सब सच में ये हो रहा है कि मुझे किसी के दरवाजे पर ना जाना पड़े। इस स्थिति से बाहर निकले भी नहीं थे कि

तभी उन्होंने अपने पास रखे हुए बैग में से एक बाक्स निकाला।
उन्हें देते हुए कहा कि शगुन का एक छोटा सा उपहार है।
मना मत करना.. चौबेजी ने खोलते हुए देखा 
इसमें वही बालगोपाल की मूर्ति थी , जिसे अभी शोरूम में देखकर आए थे। जो आंखो के सामने से ओझल नहीं हो रही थी । जिसे देखते ही मन में ये ख्याल आयाथा कि काश मेरे मंदिर में होती ।

आज ऊपरवाले ने प्रमाणित  कर दिया की मुझे उसका जितना ख्याल है उससे कहीं ज्यादा उसे मेरा ख्याल है ।

*बोलो राधे राधे*

🙏🌹 ।। राधे राधे।।  🌹🙏


(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)