Saturday 6 April 2019

" II जय श्री राधे II "


प्रेम शब्द ही अपने आप में परिपूर्ण हैं | प्रेम सोच समझकर नही किया जा सकता हैं | ये एक खुबसूरत एहसास हैं | इस प्रेम के साथ जीना बहुत बड़ी बात हैं | आश्चर्य की बात हैं प्रेम का एहसास कम लोगो को होता हैं | कुछ लोग कहते हें की, “हम उनके बिना नही जी सकते” ये जरूरी नही प्रेम ही हैं; ये आदत भी हो सकती हैं | ज्यादातर लोग अपनी इसी आदत को ही प्रेम समझकर बैठे हैं | प्रेम की अभिव्यक्ति बाहर से जरूर आती हैं पर प्रेम हमारे अंदर से ही आता हैं | प्रेम एक बहुत खुबसूरत एहसास हैं जिसे शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता हैं केवल उसे अनुभव किया जा सकता हैं |
प्रेम जिंदगी का अभिन्न अंग हैं | प्रेम के साथ अभिन्नता भी होनी चाहिये | सच्चा प्रेम हमें जीने की शक्ति देता हैं | प्रेम के स्वरुप अलग-अलग हैं | भक्ति भी प्रेम का ही स्वरुप हैं |

रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली के साथ अभिन्न प्रेम किया था | वो हमेशा माँ काली की भक्ति प्रेम में डूबे रहते थे | वे रोज रात को  जंगल जाया करते थे, उनका एक शिष्य यह देखता था | उसमें उत्सुकता जाग उठी की मेरे गुरु रोज रात में कहाँ जाते हैं | एक रात जब रामकृष्ण परमहंस रोज की रोज की भांति जंगल के लिय निकले, उनका वह शिष्य भी उनके पीछे-पीछे चुपचाप चला आया | उसने वहां जंगल में देखा की उसके गुरु निर्वस्त्र माँ काली के भजन में नाच रहे थे | उसे लगा उसके गुरु पागल हो गए हैं | उस वक्त रामकृष्ण परमहंस माँ काली के भक्ति प्रेम में डूबे हुए थे, वे माँ काली के साथ अभिन्न थे | उन्होंने प्रेम में माँ काली के साथ अभिन्नता पा ली थी |

जहाँ प्रेमभाव होता हैं वहाँ भौतिक अड़चने अपने आप दूर होने लगती हैं | प्रेम में कमी, खामियां, दूरियां ख़त्म होने लगती हैं | प्रेम में एकदूसरे पर अधिकार जताना नहीं हैं, यह प्रेम का निम्न स्तर का हैं | जहाँ स्वार्थ होता हैं वहां प्रेम नही वासना होती हैं | प्रेम तो एक होने की अनुभूति हैं | इसमें अधिकार या वर्चस्व नही हैं |

प्रेम एक होने का अनुभव हैं | जहाँ एकत्व का अनुभव आता हैं वहाँ यादों के सहारे की जरूरत भी नही होती हैं | यादें तभी होती हैं जहाँ प्रेम में कुछ कमी हो |
एकत्व का सबसे बड़ा उदाहरण राधा-कृष्ण, कृष्ण-मीरा के प्रेम में देखा जा सकता हैं | राधा ने कृष्ण से बड़े प्रेम से कहा “हें कृष्ण! ये तुम्हारी कैसी पहचान हैं, जहाँ तुम्हारे नाम से पहले मेरा नाम आता हैं | यह प्रेम की सबसे उच्च अभिव्यक्ति हैं जो स्वार्थ और शरीर से उपर हैं| इस प्रेम में दो शरीर नही आत्मा का प्रेम हैं |

कृष्ण-मीरा 

मीरा एक साधारण नारी होते हुए भी प्रेम को उच्चतम स्तर पर पहुँचा सकी | पत्थर की मूर्ति को उसने प्रेम की मूर्ति बना दिया | उसके प्रेम-प्रस्ताव को भगवान कृष्ण भी नही ठुकरा सके | यह प्रेम की उच्चतम ऊंचाई हैं | राधा-कृष्ण के प्रेम में , प्रेम की गहराई हैं, जबकि प्रेम की अनुभूति की ऊंचाई कृष्ण को मीरा के पास खीचकर लाई | पर राधा-कृष्ण के प्रेम में गहराई थी | वो दो आत्माओं की अनुभूति  थी | राधा-कृष्ण तथा मीरा-कृष्ण दोनों की प्रेम-तरंगे ( Vibration)अलग हैं| प्रेम दोनों का पवित्र हैं, प्रेम एक पवित्र रिश्ता हैं | इसमें वासना का स्थान नहीं हैं |

रामकृष्ण परमहंस के प्रेम में भक्तिरस हैं | वे माँ काली के साथ भक्तिप्रेम से अभिन्न थे | प्रेम के स्वरुप अलग-अलग हें पर परिभाषा एक हैं | प्रेम का अस्तिव अखंड हैं | प्रेम अपने आप में  पूर्ण हैं | इसके एहसास में कमतरता नहीं होती | प्रेम में उच्च तरंगे काम करती हैं | ये तरंगे हमें ध्यान से प्राप्त होती हैं | ध्यान के बिना हम तरंगे भेज नही सकते हैं | राधा हमेशा कृष्ण के ध्यान में रहती थी | तभी उसकी तरंगे कृष्ण को प्राप्त होती थी |

हर रिश्ता या बंधन प्रेम से पूर्ण होता हैं | उसे हमें महसूस करना हैं | ईश्वर ने हर इंसान को यह क्षमता दी  हैं की वह  प्रेम को महसूस कर सके | दिया खुद को जब तक जलाता नही तबतक शंमा उसके प्रेम को महसूस नही करती  |

ये प्रेम समझने के लिय पूरी जिन्दगी कम पड़ जाती हैं | ईश्वर चाहता हें की मनुष्य अपने इंसानी प्रेम को इस स्तर पर ला सके की वह अपनी चेतना को परम चेतना में मिला सके, जो की जीवन का परम उदेश्य हैं |

जब आप प्रेम में अपने आप को मिटा देते हैं तो ही सही मायने में आप प्रेम को उपलब्ध हो पाते हैं | गहराई से देखा जाये जाये तो प्रेम और कुछ और नही बल्कि ध्यान का ही एक रूप हैं क्योंकि जब हम ध्यान में अपने आप को मिटा देते हें तभी हम परमात्मा को उपलब्ध हो पाते हैं | बात एक ही हैं हर जीव परमात्मा का ही अंश हैं, और जब प्रेम अपने उच्च स्तर पर पहुँचता हैं तब आप अपने प्रेमी में ही अपने परमात्मा को पाते हैं | ईश्वर ही प्रेम हैं और प्रेम ही ईश्वर हैं |

🥀⚘ जय श्री राधे ⚘🥀



(Courtesy - श्री हरि मंदिर चण्डीगढ )

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