Sunday 29 March 2020

भगवान विट्टलनाथ जी के परम भक्त संत तुकाराम जी !

⚘ जय श्री राधे  ⚘

तुकाराम जी भगवान विट्टलनाथ जी के परम भक्त थे उनका जन्म पूना जिले में हुआ था  उनके माता-पिता के बडे ही लाडले बेटे थे, पर अठारह वर्ष की आयु में इनके माता-पिता का स्वर्ग वास हो गया और कहते है कि भक्त जब भक्ति के मार्ग पर जाता है. तो परमात्मा सारे विघ्नों को हटा देते है

माता पिता के मरने के बाद इनके गाँव में ऐसा अकाल पडा कि इनकी पत्नि और बच्चे भूख से मर गए और तुकाराम जी उन्हें बचा नहीं सके, एक के बाद एक ऐसी विपत्तियाँ आई कि मन संसार से हट गया और परमात्मा में लगने लगा, और रहा बचा हुआ तो मन संसार में लगा था 

वो इनकी दूसरी पत्नी ने हटा दिया. इनका दूसरा विवाह जीजा बाई के साथ हुआ कहीं-कहीं ऐसा आता है कि जीजाबाई स्वभाव की कर्कसा थी और तुकाराम जी एकदम विरक्त थे चित्त सदा शांत रहता था और विट्टलनाथ जी का स्मरण करते थे और अपना जीवन व्यतीत करते थे पर ये बात जीजाबाई केा अच्छी नहीं लगती थी

संसार से वैराग्य

प्रसंग 1 - एक दिन तुकाराम जी के सपने में संत आए और तुकाराम जी को  “राम-कृष्ण-हरि विट्ठल"  का मंत्र दे दिया इसके बाद मानो वैराग्य और पक्का हो गया लेकिन अभी मोह संसार से था उनकी पत्नी इनका विरक्त स्वभाव अच्छा लगता नहीं है एक बार किसी बात को लेकर पत्नी ने गुस्से में आकर गन्ना तुकाराम जी की पीठ पर दे मारा, तो गन्ने के दो टूकडे हो गए
तो तुकाराम जी ने कहा - कि अच्छा हुआ जो तूने ही इसे बाँट दिया, उन्हें इस बात से वैराग्य हुआ, वास्तव में इस संसार में प्रीति रखने का काम नहीं और विरक्त हो गए और दिन रात विट्ठलनाथ जी भक्ति में डूब गए

 तो अंदर से प्रेरणा हुई कि कुछ लिखा जाए तो उन्होंनें  “अभग”  लिखे जिसमें वेद की वाणी, गीता, रामायण का सार था जिनको वह वाणी बड़ी अच्छी लगी. लोगों को उसमें जीवन में की सच्चाई दिखी, तो लोग बडी प्रशंसा करने लगे

जब उनकी कीर्ति फैलने लगी, जब अच्छा काम करो तो लोग आलोचना ना करें तो ऐसा तो हो ही नहीं सकतालेकिन तुकाराम जी का भाव तो यहीं था  कि परमात्मा ने जो वाणी मुझे दी है उससे ना सिर्फ मेरा बल्कि पूरी जनता का उद्धार हो।  वास्तव में एक संत का काम ऐसा ही होता है। वह केवल अपने लिए नहीं जीता v
उन्होंने सोचा लोगों को भी ये चीज पता चलनी चाहिए, तो लोक उद्धार के लिए उनके मन में कविता के रूप में वो अपने आप वाणी आ गई

तुकाराम जी का अभग लिखना

प्रसंग 2- जब एक बार अनंदी नामक ग्राम में थे और कीर्तन कर रहे थे, वहीं पर अभग सुना रहे थे वहीं पर रामेश्वर शास्त्री नामक के एक व्यक्ति ने देखा कि इनकी वाणी में श्रीमदभागवत, गीता और भागवत का सार है
ये वाणी तो साक्षात वेद की है और तुकाराम जी अपने मुख से गा रहे है,  तो वो गुस्से से तुकाराम जी के पास गए.
और बोले - कि तुम्हारी वाणी में तो वेदार्थ है, और तुम तो शूद्र हो, शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि शूद्र इसे नहीं पढ सकते है, वर्जित है। शूद्र के लिए तुम्हारी वाणी जो भी ये सुनेगा तो अधर्म हो जाएगा तुमसे ये किसने कहा कि तुम वेदवाणी कहो

तो तुकाराम जी बोले – भैया ! ये मेरी वाणी नहीं ये तो देववाणी है, और साक्षात पाडुंरगा स्वामी मेरे विट्ठल नाथ जी ने मुझे इसे कहने का आदेश दिया है, पर वो पंडित भी कहाँ शांत बैठने वाला था, क्योंकि जलन जब मन में आती है तो व्यक्ति बहुत निकृष्ट काम करता है यहीं उस रामेश्वर पंडित ने किया। 

वो चाहता था कि इनकी सारी रचनाँए जो इन्होने लिखी है, वो पानी में फेंक दी जाए इसलिए उसने गाव के मुखिया को भडकाया और कहा कि देखो ये तुकाराम शूद्र जाति का होके कितना अधर्म कर रहा है और सारे गाँव वालों को ही भडकाया

तो तुकाराम जी के अभग को नदी में पत्थर बाँधकर फेंक दिया ताकि अभग तैरकर ऊपर न आ सके, तुकाराम जी को बहुत दुखा हुआ और वे उसी इन्द्राणी नदी के किनारे एक पत्थर पर तेरह दिन तब बैठ रहे।  पर कुछ नहीं हुआ.

जब अभग पानी में तैरने लगे

एक फकीर के श्राप से रामेश्वर शास्त्री के बदन में बहुत दाह ताप हुआ बहुत प्रयत्न करने पर भी ताप शांत नहीं हुआ। और इधर तुकाराम जी के सपने में बिठठल नाथ जी आए और कहा - कि देखो नदी की तरफ, मैने तेरह दिन तक तुम्हारे अभग की रक्षा की है कल वो नदी में तैरेंगे. और यहीं स्वप्न विट्ठलनाथ ने पूरे गाँवों वालों को दिया

ये चमत्कार नहीं था बल्कि ये दृढ संकल्प था तुकाराम जी का, कि वो विनती जरूर सुनेंगे।  उनकी ही कृपा से मैने अभग लिखे, और काव्यों में उनको गाया। ये दृढ विश्वास ही परमात्मा तक पुहॅचा देता है। और अगले दिन जब सारे गाँव वाले नदी के किनारे पहुचे, तो देखा कि अभग पानी पर तैर रहा है

सबने वे अभग उठाए और देखा कि पानी की एक भी बूदॅ अभग पर नहीं है, बडे प्रसन्न हुए सारे लोग तुकाराम जी के चरणों में गिर पडे और बोले कि हमें माफ कर दो साक्षात परमात्मा ने हमें सपने में आकर दर्शन दिए

और वहाँ पर जब रामेश्वर पंडित का दाह शांत नहीं हुआ, तो भगवान ने उसे सपने में कहा - कि तुमने तुकाराम जैसे सतं का अपमान किया हैं संत तो संत होता है, उसकी कोई जाति नहीं होती है और तुकाराम जी तो बहुत बडे संत है वो चाहते तो ये ज्ञान अपने तक सीमित रखते पर उन्होंने इसे जनसाधारण में दिया और आपने उनका अपमान किया और सारे गाँव वालों को भडकाया इसीलिए आपकी यहीं सजा है, आपके सारे शरीर में दाह होती रहेगी। तो रामेश्वर जी बोले – प्रभु! मुझसे भूल हो गई क्षमा करो,

तो भगवान बोले - कि तुमने मेरा अपराध किया होता तो मैं क्षमा कर देता पर तुमने मेंरे भक्त का अपमान किया है अगर तुम तुकाराम जी की शरण में जाओगे वे तुम्हें माफ कर देंगे तो हम भी तुम्हें माफ कर देंगे

जब तुकाराम जी को ये समाचार मिला तो जो अभग उन्होंने लिखे थे उनमें से एक अभग लिखकर रामेश्वर जी के पास भिजवा दिया। और कहा कि आप की कोई गलती नहीं है और जब रामेश्वरजी ने वो अभग पडा तो पढते ही उनका दाह शांत हो गयाv

जब रामेश्वर जी वापिस देहू गाँव में आए तो तुकाराम जी से माफी मागने लगे और उनके कीर्तन में गाने लगेक्योंकि संत कभी किसी का बुरा नहीं करते करते है कि एक पल का सतसंग व्यक्ति का जीवन बना देता है

और एक पल का कुसंग व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर देता है तो रामेश्वरजी तुकाराम जी की सभा में कीर्तन करने लगे और जिस फकीर ने रामेश्वर जी को श्राप दिया था उसे पता चला कि तुकाराम जी ने मेरा श्राप विफल कर दिया, तो वो गुस्से में तुकाराम जी के घर आ गया

अब देखने में वो फकीर थे, तो उस समय घर में तुकाराम जी की बेटी थी, तो उसने एक चुटकी आटा उनकी झोली में डाला तो वो लबालब भर गया और आटा गिरने लगा  जो ये चमत्कार देखा तो वो समझ गए कि ये केाई साधारण संत नहीं है, सिद्धि भी चली गई, इनके आगें कुछ नहीं कर सके, और ये भी तुकाराम जी के सान्ध्यि में आ गए और उनके साथ रहने लगे

जब तुकाराम जी में हुए विट्ठलनाथ जी के दर्शन

प्रसंग 3- जब ये एक बार अपने ननीहाल में गए तो वहा पर भी ये संकीर्तन करने लगें क्योंकि इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी तो जब सबने कहा - कि कीर्तन करो तो जब ये कीर्तन करने लगे दो युवक बाह्रमण थे, वो भी इनके कीर्तन में आ गए और देखने लगे कि यहाँ पर तो चाहे स्त्री हो, पूरूष, शूद् हो, चाहे कोई छोटा हो चाहे कोई बड़ा हो, कोई भी जाति हो, सब कुछ भूलकर इतनी विषमताओं को हटाकर सब इसका कीर्तन कर रहें है औह बाह्रमण भी इस शूद्र के साथ कीर्तन कर रहे है, और अपना धर्म च्युत कर रहे है

पर कोरी पंडिताई किस काम की जिसमें भक्तिी भाव ना हो, भगवान तो पंडिताई से नहीं भक्तिी से प्रसन्न होते हैअब तो उन दोंनों को बडा गुस्सा आया और वे दूत देवजी दादा जो गाँव के प्रमुख थे, के पास जाकर बोले - कि देखो ! कैसा समय आ गया लोगा अपने बाह्रमण धर्म को त्याग का एक शूद्र के चरणों में बैठे है जप कर रहे है 

आप इस अधर्म का नाश करो, तो दादू जी उनकी बात में आ गए कि तुम लोग सहीं कह रहे हो शूद्र कीर्तन करवा रहे है तो वहाँ पहुँच गए जहाँ तुकाराम जी कीर्तन कर रहे थे और उन्होंने देखा बूढे, बच्चे, और हर जाति के लोग एक साथ बैठे थे सब मस्त होकर भजन में तो दादू जी भी कीर्तन में बैठ गए और सोचा कीर्तन के बाद में देंखेंगे

तो भगवान की कृपा देखो जब दादू जी ने तुकाराम जी की ओर देखा तो सब भूल गए और जब बाद में उन दोंनों ने दादू जी से कहा कि आपने तुकाराम का कीर्तन बंद क्यों नहीं करवाया तो वो बोले - कि मुझे तो यहाँ पर केाई तुकाराम नहीं दिखा

मेंरे सामने तो साक्षात विट्ठलनाथ जी कीर्तन करवा रहे थे मैनें यहाँ तुकाराम को नहीं देखा मुझे तो लगा विट्ठल नाथ जी कीर्तन करवा रहे है और मैं उनकेा कैसे रोक सकता हूँ , और उन दोंनों को गाँव से निकाल दिया कि जिसके अंदर भक्तिी नहीं है

और तुकाराम जी से कहा - प्रभु ! आप धन्य हो, कि एक भक्त के रूप में आपने मुझे दर्शन दिए तो इस तरह तुकाराम जी ने अपने अभग से कीर्तन से करोडों लोगों का उद्धार किया और परमात्मा की ओर लगाया

धन्य है वे संत जो अपने साथ आने वाले सभी लोंगों को परमात्मा की ओर लगा देते है ऐेसे संतो के चरणों में हमारा कोटि केाटि नमन है

⚘ जय श्री राधे  ⚘


(साभार - श्री हरि मंदिर वृन्दावन)

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