आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय, गोविंद को गायन में बसबोइ भावे।
गायन के संग धावें, गायन में सचु पावें, गायन की खुर रज अंग लपटावे॥
गायन सो ब्रज छायो, बैकुंठ बिसरायो, गायन के हेत गिरि कर ले उठावे।
'छीतस्वामी' गिरिधारी, विट्ठलेश वपुधारी, ग्वारिया को भेष धरें गायन में आवे॥
गौ चारण की सभी को मंगलकामनाए
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