महाभारत युद्ध समाप्त हुआ और भगवान श्रीकृष्ण द्वारिकापुरी वापस लौटे..। पटरानी रुक्मणी उनके निकट आईं और कहा…
'हे कृष्ण! मेरे मन में एक बात खटक रही है, जो आपको बता कर उसका समाधान करना चाहती हूं।'
श्रीकृष्ण के संकेत पर उन्होंने पुछा - 'महादानी कर्ण का ऐसा अंत क्यों ??'
'एक श्रेष्ठ मित्र, महापराक्रमी और महादानेश्वर, ऐसा क्या दोष था उसका ??'
'जिसने स्वयं की माता कुंती को भी अर्जुन के सिवा किसी अन्य पांडव को नहीं मारने का वचन दिया था।'
'अपने कवच और कुंडल जानते बूझते भी ब्राह्मण वेशधारी इंद्र को दान में दे दिए थे..
ऐसे महान दानदाता ने अपने किस कर्म का फल भोगा ??'
तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनके प्रश्न में निहित उनकी शंका के समाधान हेतु बताया कि…
'हे महारानी! महाभारत युद्ध में जब सात सात महारथियों के सामने अकेले युद्ध करता महावीर अभिमन्यु… युद्ध भूमि में धराशाई हो गया था…. और अपनी आसन्न मृत्यु के द्वार पर खड़ा था...तब उसने युद्ध भूमि में अपने समीप खड़े कर्ण से अपनी क्षुधा पूर्ति हेतु जल की याचना इस विश्वास से की थी कि यद्यपि वह शत्रु पक्ष का है तथापि महादानेश्वर होने के कारण, वह कर्ण उसकी क्षुधा को शांत करने हेतु जल अवश्य देगा।
किंतु, अपने स्वयं के पास मीठा पेयजल होने के बाद भी, मात्र इसलिए कि ऐसा करने से उसका प्रिय मित्र दुर्योधन रुष्ट हो जाएगा, कर्ण ने उस मृत्यु द्वार पर खड़े याचक की याचना की अवहेलना की थी और …युद्ध भूमि में उस बालक को अपने सूखे कंठ लिए प्राण त्यागना पड़ा।
हे रुक्मणी। कर्ण के इस एकमात्र पाप ने उसके संपूर्ण जीवन में किए दानों से अर्जित पुण्यों को नष्ट कर दिया, यह एकमात्र कारण प्रर्याप्त था, उसके पुण्यों की यशस्वी गाथा का क्षय करने हेतु।
और…काल की गति देखिए … उसी जल के स्रोत से उत्पन्न किचड़ में … कर्ण के रथ का पहिया धंस जाता है और… उस महारथी, महादानी और महापराक्रमी कर्ण के अंत का... उसकी मृत्यु का कारण बन जाता है। यही है 'कर्मफल'....
कर्म का शाश्वत 'सिद्धांत' -
'किसी के साथ किए अन्याय का एक ही पल... आपके संपूर्ण जीवन की प्रामाणिकता को शून्य करने हेतु प्रर्याप्त है !!'
अत: ध्यान देंवें.........'हम में से प्रत्येक को अपने किए कर्मों का फल यहीं इसी जीवन में, और इसी पृथ्वी पर भोगना है।'
'किसी की भावना और विश्वास को तोड़ना सबसे बड़ा पाप है, विशेषकर ऐसे व्यक्ति का जिसने आप पर आंख मूंद कर विश्वास किया हो !!
*🙏|| जय श्री कृष्ण: ||🙏
(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)
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