Wednesday 27 May 2020

दर्जी की तकदीर

एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवों में घूम रहा था। घूमते-घूमते उसके कुर्ते का बटन टूट गया, उसने अपने मंत्री को कहा कि इस गांव में कौन सा दर्जी है, जो मेरे बटन को सिल सके।

उस गांव में सिर्फ एक ही दर्जी था, जो कपडे सिलने का काम करता था। उसको राजा के  सामने ले जाया गया । राजा ने कहा कि तुम मेरे कुर्ते का बटन सी सकते हो ? 

दर्जी ने कहा यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है ! उसने मन्त्री से बटन ले लिया, धागे से उसने राजा के कुर्ते का बटन फौरन टांक दिया। क्योंकि बटन भी राजा का था, सिर्फ उसने अपना धागा प्रयोग किया था, राजा ने दर्जी से पूछा कि कितने पैसे दूं ?

उसने कहा :- "महाराज रहने दो, छोटा सा काम था।" उसने मन में सोचा कि  बटन राजा के पास था, उसने तो सिर्फ धागा ही लगाया है।

राजा ने फिर से दर्जी को कहा कि नहीं-नहीं,

बोलो कितने दूं ?

दर्जी ने सोचा की दो रूपये मांग लेता हूँ। फिर मन में यही सोच आ गयी कि कहीं राजा यह न सोचे की बटन टांकने के मेरे से दो रुपये ले रहा है, तो गाँव बालों से कितना लेता होगा, क्योंकि उस जमाने में दो रुपये की कीमत बहुत होती थी।

दर्जी ने राजा से कहा कि :- "महाराज जो भी आपकी इच्छा हो, दे दो।"

अब राजा तो राजा था। उसको अपने हिसाब से देना था। कहीं देने में उसकी इज्जत ख़राब न हो जाये। उसने अपने मंत्री को कहा कि  इस दर्जी को दो गांव दे दो, यह हमारा हुक्म है।

यहाँ दर्जी सिर्फ दो रुपये की मांग कर रहा था पर राजा ने उसको दो गांव दे दिए ।
 
इसी तरह जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ते हैं, तो वह अपने हिसाब से देता है और मांगते हैं, तो सिर्फ हम मांगने में कमी कर जाते हैं । देने वाला तो पता नहीं क्या देना चाहता है, अपनी हैसियत से और हम बड़ी तुच्छ वस्तु मांग लेते हैं ।

इसलिए संत-महात्मा कहते है, ईश्वर को सब अपना सर्मपण कर दो, उनसे कभी कुछ न मांगों, जो वो अपने आप दें, बस उसी से संतुष्ट रहो। फिर देखो इसकी लीला। वारे के न्यारे हो जाएंगे। जीवन मे धन के साथ सन्तुष्टि का होना जरूरी है।


‼ जय श्री कृष्ण ‼


(साभार - श्री कृष्ण भारद्वाज)

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