Thursday 16 July 2020

रागु रोषु इरिषा मदु मोहु,

मानव जीवन को कैसे जिया जाए इसका संपूर्ण उदाहरण हिंदू धर्म के ग्रंथों में निहित है। जीवन को सुखमयी और सफल बनाने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक होता है। यदि मनुष्य जाने अनजाने में ही कोई ऐसा काम कर जाए, जो उसे नहीं करना चाहिए तो उसे उसका फल उसे भोगना ही पड़ता है। कौन सी आदतें अच्छी हैं और कौन से काम करने से नुकसान ही होता है इसके बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीरामचरितमानस के एक दोहे से समझा जा सकता है। आइए जानते हैं इसके बारे में-

रागु रोषु इरिषा मदु मोहु, जनि जनि सपनेहुं इन्ह के बस होहु।
सकल प्रकार बिकार बिहाई, मन क्रम बचन करेहु सेवकाई।।

अर्थात- राग (अत्यधिक प्रेम), रोष (क्रोध), ईर्ष्या (जलन), मद (अहंकार) और मोह (लगाव)- इस पांच कामों से हमेशा नुकसान ही होता है, अतः इनसे सपने में भी दूर ही रहना चाहिए।
 
राग यानी अत्यधिक प्रेम
जीवन में किसी भी बात की अति बुरी होती है। किसी से भी अत्यधिक या हद से ज्यादा प्रेम करना गलत होता है। बहुत ज्यादा प्रेम की वजह से हम सही-गलत को नहीं पहचान पाते। कई बार बहुत अधिक प्रेम की वजह से मनुष्य अधर्म तक कर जाता है जैसे गुरु द्रोणाचार्य। गुरु द्रोणाचार्य जानते थे कि कौरव अधर्मी है, फिर भी अपने पुत्र अश्वत्थामा से बहुत अधिक प्रेम करने की वजह से वे जीवनभर अधर्म का साथ देते रहे। पुत्र से अत्यधिक प्रेम के कारण ही गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई थी। इसलिए किसी से भी ज्यादा मोह नहीं करना चाहिए।

रोष यानी क्रोध
क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। क्रोध में मनुष्य अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव गुस्से वाला होता है, वह बिना सोच-विचार किए किसी का भी बुरा कर सकता है। क्रोध की वजह से मनुष्य का स्वभाव दानव के समान हो जाता है। क्रोध में किए गए कामों की वजह से बाद में शर्मिदा होना पड़ता है और कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। इसलिए इस आदत को छोड़ देना चाहिए।

ईर्ष्या यानी जलन
जो मनुष्य दूसरों के प्रति अपने मन में ईर्ष्या या जलन की भावना रखता है, वह निश्चित ही पापी, छल-कपट करने वाला, धोखा देने वाला होता है। वह दूसरों के नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। जलन की भावना रखने वाले के लिए सही-गलत के कोई पैमाने नहीं होते हैं जैसे दुर्योधन। दुर्योधन सभी पांडवों की वीरता और प्रसिद्धि से जलता था। इसी जलन की भावना की वजह से दुर्योधन ने जीवनभर पांडवों का बूरा करने की कोशिश की और अंत में अपने कुल का नाश कर दिया। अतः हमें ईष्या या जलन की भावना कभी अपने मन में नहीं आनी देनी चाहिए।

मद यानी अहंकार
सामाजिक जीवन में सभी के लिए कुछ सीमाएं होती हैं। हर व्यक्ति को उन सीमाओं का हमेशा पालन करना चाहिए, लेकिन अहंकारी व्यक्ति की कोई सीमा नहीं होती। अंहकार में मनुष्य को अच्छे-बुरे किसी का भी होश नहीं रहता है। अहंकार के कारण इंसान कभी दूसरों की सलाह नहीं मानता, अपनी गलती स्वीकार नहीं करता और दूसरों का सम्मान नहीं करता। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों को कष्ट पहुंचाने वाला होता है।
 
मोह यानी लगाव
सभी को किसी न किसी वस्तु या व्यक्ति से लगाव जरूर होता है। यह मनुष्य के स्वभाव में शामिल होता है, परंतु किसी भी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक मोह भी बर्बादी का कारण बन सकता है। किसे से भी बहुत ज्यादा लगाव होने पर भी व्यक्ति सही-गलत का फैसला नहीं कर पाता और उसके हर काम में उसका साथ देने लगता है। जिसकी वजह से कई बार नुकसान का भी सामना करना पड़ जाता है।
 

🚩जय श्री हरि 🚩
🚩जय श्रीराम 🚩

(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)

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