Tuesday 30 June 2020

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना .....


सादर जय श्रीराम........ 🌺

एक बार गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज को किसी ने बताया कि जगन्नाथजी में तो साक्षात् भगवान ही दर्शन देते हैं,बस फिर क्या था, सुनकर तुलसीदासजी महाराज तो बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिये।महिनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरान्त जब वह जगन्नाथपुरी पहुँचे तो मन्दिर में भक्तों की भीड़ देखकर प्रसन्न मन से अन्दर प्रविष्ट हुये। जगन्नाथजी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का-सा लगा। वह निराश हो गये और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत् में सबसे सुन्दर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्रीराम नहीं हो सकते ।

इस प्रकार दु:खी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये।सोचा कि इतना दूर आना व्यर्थ हुआ।
 क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है ? कदापि नहीं।
         
रात्रि हो गयी, थके-मांदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था।अचानक एक आहट हुई,वे ध्यान से सुनने लगे ।
अरे बाबा !तुलसीदासजी बोले  कौन है ? एक बालक हाथों में थाली लिये पुकार रहा था। उन्होंने सोचा साथ आये लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदासजी भी दर्शन करने को आये है। इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा। वे उठते हुए बोले --'हाँ भाई ! मैं ही हूँ तुलसीदास।

बालक ने कहा, 'अरे ! आप यहाँ हैं।मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ ।'
बालक ने कहा -'लीजिये, जगन्नाथजी ने आपके लिये प्रसाद भेजा है ।'

तुलसीदास बोले -- भैया कृपा करके इसे वापिस ले जायँ।
बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, 'जगन्नाथ का भात !सारा जगत पसारे हाथ' और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे है।

कारण? तुलसीदासजी बोले, 'अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता हूँ।फिर यह जगन्नाथजी का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ,यह मेरे किस काम का ? '

बालक ने मुस्कराते हुये कहा अरे, बाबा ! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है। तुलसीदासजी बोले यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता ।
         
बालक ने कहा कि फिर आपने-अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है --

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।

अब तुलसीदासजी की भाव-भंगिमा देखने लायक थी।नेत्रों में अश्रु-बिन्दु निकल रहे थे परन्तु , मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे ।
      
थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि मैं ही तुम्हारा राम हूँ। 
मेरे मन्दिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है।विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है ।कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना ।

तुलसीदासजी की स्थिति ऐसी कि रोमावली रोमांचित थी, नेत्रों से अश्रु अविरल बह रहे थे और शरीर की कोई सुध ही नहीं उन्होंने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया ।

प्रातः मन्दिर में जब तुलसीदासजी दर्शन करने के लिए गये तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्रीराम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुये।

भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की।
जिस स्थान पर तुलसीदासजी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान तुलसी चौरा नाम से विख्यात हुआ ।


🙏|| जय श्री जगन्नाथपुरी ||🙏

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