Wednesday 12 August 2020

'संकटमोचन' श्री हनुमान ।


इस मानवरूपी जीवनकाल में अक्सर इंसान खुद को विपरीत परिस्थ‍ितियों के बीच घि‍रा पाता है। मुसीबतों से पार पाने का कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। जब सारे उपाय नाकाम हो जाते हैं, तो हारकर प्रभु की शरण में आता है।

प्रभु भी अपनी शरण में आए हुए को कभी निराश नहीं करते। जिस तरह मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम दीनों पर दया करने वाले, कृपा के सागर हैं, उसी तरह उनके भक्त हनुमान भी शरण में आए भक्तों पर अपना स्नेह दिखलाते हैं। संकटों से उबारने की वजह से ही तो उन्हें 'संकटमोचन' नाम मिला है।

रामचरितमानस के किष्किंधाकांड की इन चौपाइयों में आपको सकारात्मकता का अविरल उदाहरण मिलता है। कहा जाता है कि इस अंश का पाठ करने से हनुमान जी अपने भक्तों पर असीम प्रेम बरसाते हैं।

यह वही प्रसंग है, जब सीता माता की खोज में समुद्र के पार लंका भेजे जाने के लिए जामवंत हनुमानजी को उनके असीम-अपार बल का स्मरण कराते हैं ।इसके पाठ से बड़ी से बड़ी बाधाएं दूर होती हैं और सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं...

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥

पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥


भावार्थ:-ऋक्षराज जाम्बवान् ने श्री हनुमानजी से कहा - हे हनुमान्! हे बलवान्! सुनो, तुमने यह क्या चुप साध रखी है ? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो॥


कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥

राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥

भावार्थ:- जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान्जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥

कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥

सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥


भावार्थ:-उनका सोने का सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतों का राजा सुमेरु हो। हनुमान्जी ने बार-बार सिंहनाद करके कहा - मैं इस खारे समुद्र को खेल में ही लाँघ सकता हूँ॥


सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥

जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही॥


भावार्थ:- और सहायकों सहित रावण को मारकर त्रिकूट पर्वत को उखाड़कर यहाँ ला सकता हूँ। हे जाम्बवान् ! मैं तुमसे पूछता हूँ, तुम मुझे उचित सीख देना (कि मुझे क्या करना चाहिए)॥


एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई॥

तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना॥


भावार्थ:-(जाम्बवान् ने कहा-) हे तात ! तुम जाकर इतना ही करो कि सीताजी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर कह दो। फिर कमलनयन श्री रामजी अपने बाहुबल से ही राक्षसों का संहार कर सीताजी को ले आएँगे, केवल खेल के लिए ही वे वानरों की सेना साथ लेंगे॥


छंद :

कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनि हैं।

त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानि हैं॥

जो सुनत गावत कहत समुक्षत परमपद नर पावई।

रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई॥


भावार्थ:- वानरों की सेना साथ लेकर राक्षसों का संहार करके श्री रामजी सीताजी को ले आएँगे। तब देवता और नारदादि मुनि भगवान् के तीनों लोकों को पवित्र करने वाले सुंदर यश का बखान करेंगे, जिसे सुनने, गाने, कहने और समझने से मनुष्य परमपद पाते हैं और जिसे श्री रघुवीर के चरणकमल का मधुकर (भ्रमर) तुलसीदास गाता है।


दोहा :

भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।

तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि॥


भावार्थ:-श्री रघुवीर का यश भव (जन्म-मरण) रूपी रोग की (अचूक) दवा है। जो पुरुष और स्त्री इसे सुनेंगे, त्रिशिरा के शत्रु श्री रामजी उनके सब मनोरथों को सिद्ध करेंगे॥


सोरठा :

नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।

सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक॥


भावार्थ:-जिनका नीले कमल के समान श्याम शरीर है, जिनकी शोभा करोड़ों कामदेवों से भी अधिक है और जिनका नाम पापरूपी पक्षियों को मारने के लिए बधिक (व्याधा) के समान है, उन श्री राम के गुणों के समूह (लीला) को अवश्य सुनना चाहिए॥


🚩जय श्रीराम🚩

🚩जय बजरंग बली 🚩


(साभार - श्री कृष्ण भारद्वाज)


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