कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था... कि रुक्मणी और राधिका मिली हैं और एक दूजे पर निछावर हुई जा रही हैं।
सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी।
दोनों ने प्रेम किया था।
एक ने बालक कन्हैया से, दूसरी ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से।
एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था,दूसरी को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी महायोद्धा कृष्ण।
कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा।
राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।
रुक्मणी कृष्ण की पत्नी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है।
उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को।
उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।
कितनी अद्भुत लीला है,
राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था।
रुक्मणी के लिए कन्हैया कृष्ण थे।
पत्नी होने के बाद भी रुक्मणी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं।
'आप' से 'तुम' तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है।
रुक्मणी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।
राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही "चरम" से किया था।
शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।
कितना अजीब है ना..!
कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं।
और
जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।
तभी कहता हूँ...
कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये।
पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे।
बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए..जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण।
कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं।
राधिका हों या सुदामा... कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।
🌹🙏🌹 जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏🌹
सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी।
दोनों ने प्रेम किया था।
एक ने बालक कन्हैया से, दूसरी ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से।
एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था,दूसरी को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी महायोद्धा कृष्ण।
कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा।
राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।
रुक्मणी कृष्ण की पत्नी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है।
उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को।
उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।
कितनी अद्भुत लीला है,
राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था।
रुक्मणी के लिए कन्हैया कृष्ण थे।
पत्नी होने के बाद भी रुक्मणी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं।
'आप' से 'तुम' तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है।
रुक्मणी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।
राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही "चरम" से किया था।
शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।
कितना अजीब है ना..!
कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं।
और
जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।
तभी कहता हूँ...
कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये।
पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे।
बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए..जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण।
कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं।
राधिका हों या सुदामा... कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।
🌹🙏🌹 जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏🌹
(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)
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