Friday 7 February 2020

🙏श्री सावता माली और भक्तिमति नागू जी🙏


श्री पंढरिनाथ भगवान् विट्ठल के भक्तो में संत सावता माली एक महान भक्त हुए है। अरणभेंडी(अरणगाव) नामक गाँव इनका निवास था,व्यवसाय से ये माली का काम करते थे। संत सावता माली और इनकी पत्नी जनाबाई दोनों प्रभु की भक्ति में सदा मग्न रहते। नागू नाम की इनकी कन्या भी उच्च कोटि की भक्त थी।

मराठी भाषा में ‘साव’ का अर्थ चारित्र्य, सज्जनता । सावता यह भाववाचक शब्द है । सभ्यता, साधारण पन यह इसका अर्थ है ।

श्री सावता माली -जन्म : इ .स १२५०
वैकुण्ठ गमन :आषाढ़ वद्य चतुर्दशी ,१२१७ (१२ जुलाई १२९५),अरणगांव 

संत जी हमेशा कहते और मानते थे की यह बाग भगवान् की है और भगवान् ने हमें इसकी देख रेख हेतु नियुक्त किया है।  बाग़ में तरह तरह के फल , सब्जियां एवं पुष्प लगे थे। बाग़ में वारकरी (वैष्णवो द्वारा पंढरपुर पैदल यात्रा) यात्रियों और बहुत से लोगो का आना जाना लगा रहता क्योंकि संत सवतामाली की बाग थी ही ऐसी।

एक दिन गाँव के एक व्यक्ति ने गाँव में बात फैला दी की सावता माली नास्तिक है। वो कभी भगवान् का दर्शन करने नहीं जाता और पंढरपुर यात्रा को भी नहीं आता , उसके बाग़ के फल सब्जी खाना पाप है! उस से बोलना भी पाप ही है। धीरे धीरे संत जी की बाग में वारकरी भक्तो का आना जाना बंद हो गया, वे लोग बाग के सामने से निकलते परंतु बाग के अंदर अब नहीं जाते।

इस बात से सावता माली की पुत्री ,भक्ता नागू बहुत दुखी रहने लगी। एक दिन कुछ वारकरी पंढरपुर यात्रा पर निकले थे और बाग़ की सामने से निकलते समय नागू ने उनसे पूछा – आप बाग में क्यों नहीं आते है? उन लोगो ने कहा – सावता माली पंढरपुर के रास्ते पर ही पास में रहता है ,परंतु फिर भी दर्शन को नहीं आता, वो पक्का प्रपंच में फस गया है,उसको पर्मार्थ नहीं चाहिए । मुख से’ विट्ठल ‘राम कृष्ण हरी ‘ नाम तो लेता है परंतु प्रभु के दर्शन को नहीं जाता, हम क्यों आये उसकी बाग के अंदर?

भक्ता नागू ने अपने पिता से कहा – पिताजी हम लोग क्यों नहीं जाते इस वारी (पैदल यात्रा)के साथ पंढरपुर?जाते है ना हम भी?

संत सावता माली कहने लगे – बेटी ,प्रभु को ये पसंद नहीं आएगा , वह कहेंगे काम छोड़ कर यहाँ क्यों आये हो? ये बाग भगवान् विट्ठल की है ।काम छोड़ कर उनके पास गए तो वो कहेंगे – क्यों आये हो यहाँ पर, मेरी बाग वहाँ सुख गयी तो? मेरी बाग़ सुख गयी तो मुझे नहीं चलेगा, तुमको मैंने जो काम दे रखा है वो छोड़ कर यहाँ क्यों आये हो?

सत्य बात ये थी की सावता माली इतनी ऊँची अवस्था को प्राप्त हो चुके थे की उनको सर्वत्र हरी दर्शन होता था,मुख से नाम निकलता रहता था परंतु अन्य लोग यह लीला नहीं समझते। दूसरा उनका भाव था की यहाँ से होकर संत महात्मा पंढरपुर की यात्रा के लिए जाते है,थकान होती होगी अतः उनकी सेवा हम फल फूल आदि से करे। यदि बाग़ छोड़ कर चले गए तो संत महात्माओ की सेवा नहीं होगी। संतो के चरणों में इनकी बहुत भक्ति थी ।पर साधारण लोग यही समझते की सावता माली नाम तो जपता है पर मंदिर में कभी नहीं जाता ।

नागू बहार खेलने निकल गयी। उसने कुछ सोच विचार किया और पुनः अंदर आकर बोली – पिताजी हम नहीं जाएंगे पंढरपुर पर विठू को तो यहाँ बुलवा लीजिये। प्यार से नागू भगवान् को धन्या ,विठू ,विठुराय ऐसे नामो से संबोधित करती । नागू निरंतर अपने पिता से पूछा करती -बाबा इस बाग का स्वामी वह विठू है न? तब वह बाग में कभी पधारता क्यों नहीं है? सावता माली को अपनी कन्या के प्रति बड़ा कौतुक लगा । उन्होंने बेटी को प्यार से अपने पास बिठाया और कहा – बेटी, वो तो समस्त जगत के पालनकर्ता है । उनको बहुत काम होता है ! परंतु जब उनको समय मिलेगा वह अवश्य आएंगे ।

एक दिन की बात है, कुछ वारकरी संत और यात्री पंढरपूर यात्रा पर प्रभु से भेट करने निमित्त निकले। नागू को जैसे इस बात का पता चला उसने एक टोकरी में कुछ गाजर और मूली भर दिए । उसने उन वारकरी भक्तो से कहा – भैया, यह नैवेद्य मेरे विठुराय को ले जाकर दोगे क्या? उसको कहना की यह सब्जी ,फल उसके ही बाग के है । बहुत से वारकरी तो रुके ही नहीं, अनदेखा कर के चले गए । आगे आने वाले कुछ वारकारियो ने उस भक्ता का मजाक उड़ाया और कहा छी !मूली और गाजर? ये लेकर जाएँ ? वह उस टोकरी को फेक कर आगे चले गए । परंतु एक बुढा वारकरी भक्त उस कोमल हृदया भक्ता के मन का भक्तिभाव जान गए। उन भक्त ने वह टोकरी उसके हाथ से ले ली और कहने लगे – मै दूंगा हां यह सब्जी और फल भगवान् विट्ठल को।

नागू को आनंद हुआ। उस कन्या भक्ता ने कहा – भैया, विठू से कहना की बाग उसकी ही है। मेरे माता पिता दिनरात तुम्हारा ही नाम जपते रहते है और हां ,मै भी उन्ही का नाम लेती हूं । विठुराय को कहना ,नागू आपकी प्रतीक्षा कर रही है। आप मेरी प्रार्थना निवेदन दे कर शीघ्र लौटना। दोगे न मेरा संदेश ? आहाहा ! उस भक्ता की वाणी सुनकर उस वारकरी भक्त का हृदय भर आया । निष्पाप,निस्वार्थ और अपार प्रेम। इस कन्या का निमंत्रण सुनकर वह अवश्य आएगा ।

उस वारकरी ने कहा – बेटी मै तुम्हारी प्रार्थना अवश्य निवेदन करूँगा और भगवान् भी अवश्य आएंगे । उनका अपने भक्तो पर बहुत प्रेम है । अरणभेंडी गाँव से पंढरपूर १८ मिल की दूरी । वारकरी भक्त ने हाथ में टोकरी ली और चल पड़ा ।मंदिर पहुँच कर उसने नागू का संदेश वैसा का वैसा भगवान् को सुनाया ।

उस दिन शाम को बाग का काम पूर्ण कर के संत सावता माली अपनी बेटी नागू से बोले – चलो बेटी,घर चले । तुम्हारी माता प्रतीक्षा करती होगी । नागू ने कहा – बाबा ,आज तो वह पांडुरंग आने वाला है । मैंने वारकरी भैया के साथ सब्जी और फल नैवेद्य के रूप में भेजे है। शीघ्र लौटना ऐसा भी कहा है। विठू आता होगा, मुझे प्रतीक्षा करनी चाहिए। मै यही ठहरूँगी । संतो ने लिखा है ही सभी वैष्णवो के ह्रदय में जिस दिन नागू जैसा दृढ़ विश्वास आएगा उस दिन भगवान् से मिलान अवश्य होगा । प्रह्लाद और नागू जैसा दृढ़ विश्वास भगवान् की प्राप्ति को सहज बना देता है । बेटी का ऐसा भगवत्प्रेम देख कर संत सावता माली धन्य हो गए। उन्होंने बेटी को अपने पास बिठाया और कहा – मै भी रुकता हूं यहाँ पर । संत सावता माली विठुराय का स्मरण करने लगे।

बहुत समय बीत गया बेटी और पति घर नहीं आये ऐसा सोच कर सावता माली की पत्नी जनाबाई को चिंता होने लगी। कुछ देर प्रतीक्षा करने के पश्चात जनाबाई भी बाग में आ गयी । बेटी की प्रेम अवस्था और प्रभु भक्ति देख जनाबाई भी अश्रुपात करने लगी। सब परिवार सुध बुध खो कर प्रभु का स्मरण करने में मग्न हो गए। नाम जप करते करते पूरी रात बीत गयी किसी को पता न चला । नागू ने भगवान् का दर्शन प्राप्त करने के लिए रट लगा दी, उसने अन्न जल त्याग दिया और भजन में लगी रही।

संत श्री नामदेव ने अपनी वाणी में कहा है – संत श्री सावता माली जी की योग्यता क्या है इसका हमने संतो के साथ प्रत्यक्ष अनुभव किया है।

बूढा वारकरी भक्त ने जैसे ही भगवान् को नागू का संदेश सुना कर प्रणाम् किया उसी क्षण तत्काल प्रभु मंदिर से बहार चले गए और सीधे संत सावता की बाग में चले गए । सावता माली के पास जब प्रभु आये तब प्रभु के दर्शन केवल सावता माली को ही हुए थे, उन्हें देख कर संत जी ने विचार किया- इस सुंदर विठू को कहा रखे और क्या करे ? आहाहा ऐसी हलचल उनके मन में होने लगी ।श्री कृष्ण तो नटवर है,उनकी लीला कौन समझ सके।  प्रभु ने विचित्र लीला की और भगवान् पांडुरंग कृष्ण बोले – बाबा , मेरे पीछे लोग पड गए है ,आप हमको कही छिपा लो। संत जी ने यहाँ वह देखा की कहा छिपावे, परंतु बाग़ तो खुली खुली थी । छुपने कि जगह ही नहीं । संत तो सरल ह्रदय और भोले होते है, बिना कुछ सोच विचार के संत सावता माली ने सब्जी काटने का खुरपा लेकर ह्रदय और पेट के बिच वाले हिस्से को चिर दिया ।

भगवान् पांडुरंग ने अतिलघुरूप धारण कर लिया और जाकर सीधे संत सावता माली के हृदय में जाकर बैठ गए। भगवान् भी रंग बिरंगी लीलाये करते है । भगवान् को संत जी के हृदय में रहना बहुत अच्छा लगा । प्रभु हृदय में विलीन हो गए ,संत निरंतर अपने हृदय में उस दिव्य ज्योति का दर्शन करने लगे । उनको दर्शन तो आत्मरूप से होता रहता परंतु संत जी सोचने लगे अब हमारी बेटी और पत्नी को दर्शन कैसे हो?भगवान का साकार रूप तो मेरे ह्रदय में विलीन होकर निराकार हो गया , अब उस कृष्ण के रस स्वरुप को प्रकट करके बेटी और पत्नी को दर्शन कैसे करावे ?

संतो का शरीर ही एक मंदिर है । उनके ह्रदय में भगवान और भक्ति देवी का निवास होता है , अंग अंग में तीर्थ विराजते है ।संत केवल मंदिर में ही नहीं अपितु कण कण में भगवान् का दर्शन करते है, इस बात की प्रतिष्ठा करने के लिए भगवान ने एक लीला की । पंढरपुर  में उस दिन बहुत से वारकरी भक्तो का समूह मंदिर में आया पर प्रभु वहाँ दिखे नहीं । किसको कुछ समझ नहीं आ रहा था।  बाद में श्री निवृत्तिनाथ,ज्ञानदेव ,सोपानदेव, मुक्ताबाई आदि अनेक महान् संत भी उस दिन भगवान् विट्ठल के दर्शन के लिए पंढरपूर में मंदिर पधारे । अंदर जाकर देखा तो भगवान् मंदिर में नहीं है। भगवान् को ढूंढे कैसे? संत श्री ज्ञानदेव जी ने कुछ क्षण ध्यान लगाया और कहा – चलो, भगवान् अरणगाव में कही गए है ।

भगवान् के कंठ में तुलसी हार तो होता ही है, अंगो से भी सुंदर सुगंधि आती है। सुंगंध के पीछे पीछे चल कर पता लग जायेगा। सब संत मंडली तुलसी की सुगंधि के पीछे चले जा रहे है।  चलते चलते आ पहुचे श्री सावता माली जी की बाग में।नागू उस समय सावता माली की गोद में सिर रख कर विरह में विट्ठल स्मरण कर रही थी । संतो को देख कर सावता माली आनंद में भर गए और कहने लगे – आज हमारा भाग्य बड़ा है । हम धन्य हो गए, संतो के चरण से हमारा घर पावन हो गया । नामदेव जी ने कहा – बाबा आपका भाग्य तो बड़ा ही है !हमारे चरण यहाँ पधारे इसलिए नहीं! भगवान् पांडुरंग यहाँ आये इसीलिए ! बताओ तो हमारे प्रभु कहा है ?

संत सावता माली कहने लगे – मै स्वयं प्रभु की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ।यह बालिका ४ दिनों से अन्न जल त्याग कर भगवान् के आने की आस लगाये बैठी है।  नामदेव ने कहा – कुछ भी मत बोलो, ज्ञानदेव जी ने कहा हैं प्रभु यही पर है। असत्य कैसे होगा ?तुमने प्रभु को कहा छुपाया है वो बताओ ?

सावता माली ने कहा – मै प्रभु को कहा छुपाऊ? और प्रभु क्यों छुप के रहेंगे ? भगवान् यदि छुपे होंगे ही तो मेरे हृदय मे ही! दूसरी जगह कहाँ? मुझे तो प्रभु सर्वत्र दीखते है, वे कण कण में व्याप्त है। ये फूल पौधे के सब उसके ही रूप।

ज्ञानदेव बोले – वाह वाह यहाँ विट्ठल छुपे नहीं यहाँ तो विट्ठल सर्वत्र बिखरे है , सुगंध की तरह । सावता माली बोले – ज्ञानदेव जी भगवान् का निराकार सर्वव्यापक रूप मेरे और आपके लिए अच्छा है परंतु हमारी पुत्री नागू का समाधान कैसे हो? उसको तो सगुण साकार रूप ही प्रिय है , इसने विट्ठल दर्शन की रट लगा राखी है, ४ दिन से अन्न जल कुछ लिया नहीं ।इस बालिका का समाधान मै कैसे करू ?

नामदेव जी कहने लगे – अभी तो आपने कहा ,भगवान आपके हृदय में है। सावता माली ने कहा – ये भी सत्य है नामदेव जी ,यहां वहां क्यों ढूंढना ? आपने अच्छी याद दिलायी । सावता माली ने साग फल काटने वाला खुरपा उठाया और खच्च से छाती पर मारा और कहा – पांडुरंग विट्ठल मेरे हृदय से बहार आओ और साकार रूप में दर्शन दो । उनके ह्रदय से एक तेजस्वी प्रकाश निकला और सम्पूर्ण बाग में तुलसी की दिव्या सुगंधि व्याप्त हो गयी। भगवान् प्रकट हुए और संत सावता माली मूर्छित हो गए ।प्रभु ने अपनी कृपा दृष्टी से उनकी मूर्छा दूर की ।

भगवान् प्रकट हुए तब नागू भाग कर प्रभु के पास गयी और उनसे लिपट गयी । उसने कहा – विठु, विठु तुम आ गए ? देखो पिताजी विठू आ गया,धनी आ गया। मुझे पता था वह अवश्य आएगा।  सब संत मंडली ने हरिनाम संकीर्तन किया ,उसके बाद सावता माली ने संतो और प्रभु को भोजन प्रसाद पवाया। भगवान् ने अपनी गोद में नागू को बिठाकर प्रसाद पवाया। नागू ने कहा – विठु !अब कही जाना नहीं हां। इसपर नामदेव जी बोले- बेटी यहाँ रहकर कैसे चलेगा,प्रभु को जगत के बहुत कार्य करने होते है। वे व्यस्त होते है ।

नागू ने कहा यह भी ठीक ही है परंतु बीच बीच में आते रहना।ये बाग आपकी ही तो है और हम सब आपके सेवक, आओगे ना ? भगवान् कहने लगे – क्यों नहीं आऊंगा?तुमने याद किया तब आ जाऊंगा ,तुम्हारे प्रेम में बंध आना ही पड़ेगा । सावता माली – जनाबाई को प्रभु ने आशीर्वाद दिया और नागू को लाड लड़ा कर प्रभु अंतर्धान हो गए।

🌹🙏🌹 जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏🌹

(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)

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